Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे टीका-भायरी' इत्यादि--
हे महाराज ! मे=मम म्पका-सोटराः, ज्येष्ठकनिष्ठका अपना अनुना भ्रातरोऽपि च मा दुसाद न रिमोचन्तिम्मान रिमोचितवन्तः । पपा मम अनाथता ॥२६॥ मूलम्-भइणीओ में महाराय , सँगा जेहकनिहगा।
न यं दुक्खा विमोयति, एसा मन्झ अगाया ॥२७॥ छाया--भगिन्यो में महारान !, ससका ज्येष्ठकनिष्ठिमा ।
न च दुःखाद् विमोचयन्ति, एपा मम अनाथता ॥२७॥ टोका--'भडणीओ' इत्यादि।
हे महाराज ! मे मम ज्येष्ठकनिष्ठिमा ज्येष्ठा कनिष्ठा स्त्रका सोदरा भगिन्यश्च मा दु ग्बाद न विमोचयन्ति स्म । एपा मम अनाथता ॥२७॥
'भायरो मे महाराय' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(महाराय-महाराज !) हे राजन् । (मे-मे) मेरे (सगास्वका.) सोदर-सगे जो (जेहानिगा मायरो-ज्येष्ठकनिष्ठका.-भ्रातर') बडे छोटे भाई हे वे भी मुझे (दुरग्वा-दुखात् ) इस दु.ग्व से (न य विमोयति-न च विमोचयन्ति) नहीं छुडासके (एसा मज्झ अणयाएषा मे अनायता) यह मेरी अनायता है ॥२६॥
'भइणीओ' इत्यादि। __ अन्वयार्थ-इसी तरह (महाराय-महाराज) हे राजन् । जो (भे-मे) मेरी (सका जेट्टकनिहगा भडणीओ-स्वका ज्येष्ठकनिष्ठका भगिन्य.) उस समय सोदर-सगी वडी छोटी बहिनें थी वे भी मुझे इस (दुवा
"भायरो मे महाराय" त्यात
अन्वयार्थ महाराय-महाराज राखनु । मे-मे भा॥ सगा-स्वका सा जेटकनिहगा भायरो-ज्येष्ठकनिष्ठका भ्रातर. २ नानाभाट मा छ ते पर भने दवाखा-द खात या मथी न य विमोयति-न च विमोचयन्ति छाडाची शय ना एसा मज्झ अणाहया-एपा मम अनाथता मा भारी अनायता छ ॥२६॥
"भइणीओ" छत्यादि
अन्वयार्थ --मापी ते महाराय-महाराज स मे मे भारी सगा जेहकनिहगा भइणीओ-स्वका ज्येष्ठकनिष्ठका भगिन्य. सगी नानीमाटी बने। ती ते ५५ भने दुक्खा न य विमोयति-दुखात न च विमोचयन्ति ।