Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययन सूत्रे
'विचित्तलयणाणि' इत्यादि ।
नयी नाता-पट्ट काय जीवरक्षणपरायण ससमुद्रमुनि निम्पलेपानि= द्रव्यतो भावतच लेपरहितानि द्रव्यत. समर्थन निशान, अपितु गृहस्थन स्वार्थ हानि, भावतो 'मीयानोमान स्थानानी' त्यभिहितानि, तथा - असस्ततानि, शाल्यन्ननोजादिभिरव्याप्तानि भत पत्र- महायशोभि = रूपातकीर्तिभि ऋषिभिः = मुनिभिः चीर्णानि=आमेरितानि विविक्तत्र्यनानि= श्रीपशुपण्डर्जितानि उपाश्रयरूपस्थानानि श्रमज=सेवितवान् वत्रनिवास कृतवान । तथा-कायेन=शरीरण परीपहान् = शीतोष्णादिपरोपहान् अस्पृशत्= सोढवान् । पुन परीपस्पर्शनाभिधानमतिशयस्यापनार्थम् ||२२||
फिर भी - 'विचित्त लयणाणि' इत्यादि ।
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अत्वयार्थ - ( ताई - त्रायी) पटुकाय के जीवों की रक्षा करने में तत्पर समुद्रपालमुनिराज (निरोवले वाई- निरूपलेपानि) द्रव्य एव भाव से लेप रहित द्रव्य से साधु के लिये नहीं लीपे गये परन्तु गृहस्थों द्वारा अपने लिये लिपे गये, भाव से " ये स्थान मेरे है" इस प्रकार से अभिवगरूप से रहित तथा (असथडाइ - असस्तृतानि) गालि अन्न आदि बीजों से अव्यास इसी से ( महायसेहिं असिहि चिण्णा - महायशोभि' ऋषिभि चीर्णानि ) महायशस्वी ऋषियों द्वारा -मुनियों द्वारा - सेवित किये गये ऐसे (विवित्तलयणाणि - विविक्तलयनानि) स्त्री, पशु, पडक से रहित उपाश्रय रू स्थानों मे ( मइज - अमजत्) रहते थे । तथा ( कायेण परिसहाइ फासेज - कायेन परिपहान् अस्पृशत् ) शरीर से शीत उष्ण आदि परीषों को सहते थे। परिषों के सहन करने का पुन यह कथन उनमे अतिशय ख्यापन करने के लिये जानना चाहिये ||२२||
छता पशु – “विवित्तलयणाणि" इत्यादि
अन्ववार्थ - ताई - नायी षट्ायना लवोनी रक्षा स्वाभा तत्पर समुद्रयास भुनिश निरोवलेवाई - निरुपलेपानि द्रव्य भने भावथी होय रहित-द्रव्यथी साधुने માટે ન લીધેલા, પરતુ ગૃહસ્થા તરફથી પાતાના માટે લેપાયેલા ભાવથી આ स्थान भाई है " सा प्रहारना मलिष्ट गइय बेघथी रहित तथा असथाडाइ - असस्तु तानि शादि अन्न याहि मीलेथी व्याप्त याथी ४ महायसेहिं इसिहिं चिण्णाइमहायशोभिः ऋपिभि. चीर्णानि महायशस्वी ऋषियों द्वारा भुनियो द्वारा सेवाभा यापेस मेवा विवित्तलयणाणि - विविक्तलयनानि स्त्री पशुपउथी रहित उपाश्रय ३५ स्थानमा भइज्ज - भजत् रहेता हता तथा कारण परिसहाइ फासेज्ज - कायेन परिपहान् अस्पृशत् शरीरश्री शीत, उयु याहि परीषहोने सडता हता परीषहोने સહન કરવાનુ ફરી આ કથન તેમા અતિશય ખ્યાપન કરવા માટે જાણવુ જોઇએ ઘરરા