Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिा टीका 4.0 नेमिनाथचरितनिरूपणम्
७३७ टोका-'मोरिटनेमि नामो' इत्यादि
अरिष्टनेमि नामा म भगवान् लभणम्बरमयुन.-तत्र लक्षणानि औदार्यगाम्भीर्यादीनि त महिनो य.तर = वनिम्तेन सयुतो युक्त -माधुर्यादिगुणसपन्न स्वरसान, तथा-भष्टमहसर रणधर -अष्टाधिक गहमा-अष्टमयम्, तत्मरव्य. कानि यानि शुभमचानि लपणानि-दस्तपादानी मस्तिस्पासिंह श्रीवत्स गड्दचक्रग नाचनाधिप्रमुमाणि तार्यकृता चिहानि तेपा पर'धारक - तीर्थकरतासचक पस्तिमायष्टोत्तरसहस्रलक्षणयुक्तः, गौतमः गीतमगोत्पन्न , कारपियामन्ति मुशोभित , तु-पुन:-बचनपभनाराचसहनन -बनकी काफारमम्थि, मसम -पट्टाकतिकोऽस्थिविशेपः, नाराचम्-उभयतो मर्कट उन्ध , एभिः सहनन-शरीररचना यस्य स तथा, जम्पभनाराचसहननापनि
सत्रकार भगवान के रूप आदि का वर्णन करते हुए कहते है'मोरिट्ट' इत्यादि।
__ अन्वयार्थ-(अरिहनेमि नामो सो-रिष्टनेमिनामा स) अरिष्ट नेमि नामवाले वे भगवान (लग्वणस्मरसजुओ-लक्षणस्वरसयुत.) मार्ग गाभीर्य आदि लक्षणों से समन्वित म्बर वाले थे। (जमहस्म लावणधरो-अप्टसहस्रलक्षण वर.) हस्तपाद आदिकों में स्वस्तिक, पम सिंह, श्रीवत्म, शव, चक, गज, अश्व, उन्न, समुद्र आदि शुभ मृचक एक हजार आठ १००८ लक्षणों को धारण किये हुए थे। (गोयमोगीतम.) गौतमगोत्र में उत्पन्न हुए थे। (काल गन्ची -कालच्छवि:) कान्ति इनसी श्याम थी। (वजरिसहसघयणो-वज्रमपमसहननः) पत्रऋपमनाराच सहनन वाले थे। कीलक के आकारवाली हट्टि का नाम वन है, पहाकार हड्डी का नाम ऋपम है। उभयत भर्फटनव का नाम नाराच है। इनसे जो शरीर की रचना होती है उसका नाम वज्रम
सूत्री मावानना ३५ मनु वर्णन ४ा छ, “सोरिद्र
मन्वयाय--अरिष्टनेमिनामो सो-अरिष्टनेमिनामा स रिटनेमि नामवाणा त भगवान भाधु मालीय सिक्षणायुत स्व२वाणा ता अट्टसहस्सलकारणधरो
अष्टसहसलक्षणधर पाय ५१मा माथिया, वृषभ, सिड, श्रीस, शम, य४, ગજ, અશ્વ, છત્ર, સમુદ્ર, વગેરે શુભસૂચક એક હજાર આઠ ૧૦૦૮ લક્ષણેને ધારણ ३२० ता गोयमो-गौतम. गाभगोत्रमा उत्पन्न याहु कालगन्छी -कालक
वि.तमनीती श्याम ती वनरिसहसपयणो-वनऋपभसहनन यापन, નારા, મ હનનવાળા હતા ખીલ આકારના હાડકાનું નામ વજી છે પટ્ટાકાર હડ કાનું નામ ઋષભ છે ઉભયન મર્કટબ ધનુ નામ નારા છે તેન થી શરીરની જે