Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका म. महानिस्प निरूपणम
___ कुतो दीक्षाग्ररणानन्तर व नायो जातः, न तत. पूर्वम् ? इत्याह-~मूलम्-अप्पा नई वेयरंणी. अप्पा में कूडसामली।
अप्पा कामदुहा घेण, अप्पा मे" नन्देणं वेणं ॥३॥ आया--आत्मा नदी तरणी, आत्मा मे कूटगाल्मतिः ।
भात्मा कामदुरा येनु , आत्मा मे नन्दन पनम् ॥३६॥ टीका-'अप्पा' इत्यादि
हे रामन । आन्मा आत्मैव नरक सम्बन्धिनी वैतरिणी नदी। उद्धत म्यात्मनो नरकहेनुस्यात् । अतएव मे मम आत्मैव कुटमिरम्पीडाजनम्म्यानमिव यातना हेतृत्वात, शाल्मलि =नरसम्यो क्रिय शाल्मक्षिोऽस्ति । तथा-आत्मैव के उपाय का परिज्ञान वाला होने से तथा उनका सरक्षण करने वाला होने से मै नाथ न गया ह ॥३०॥
दीक्षाग्रहण करने पर आप नाथ बने और उसके पहले नाय नहीं ये सो क्या कारणइसी को कहते है - 'अप्पा' इत्यादि ।
दीक्षा ग्रहण के पहिले में नाथ क्यों नहीं हुआ और अब नाय कैसे बन गया ह-सो हे राजन! मै तुम्हारे इस सदेह को निवृत्ति निमित्त यह कहता है कि यह (अप्पा वेयरणी नई-आत्मा वैतरणी नदी) आत्माउद्धत आत्मा ही नरक की चैतरणी नदी है-गोंकि ऐसी आत्मा ही नरक की हेतु होती है इसी लीये (अप्पा मे कृडसामली-आत्मा मे कर शाल्मलि:) ऐसी आत्मा मुझे कट की तरह-पीडाजनक स्थान की तरह-यातना की हेतु होने से-नरक में रहे हुए वैक्रिय शाल्मली वृक्ष તેમની રક્ષા કરવાના ઉપાયના જ્ઞ નવાળો હોવાથી તથા એમનુ સ રક્ષણ કરવાવાળો હેવાથી હુ નાથ બની ગયે છુ ૩પ
દીક્ષા લીધા પછી આપ નાથ બન્યા અને એની પહેલા આપ નાથ ન હતા अनु शुभएछ? माने छ-"अप्पा त्याला
અ વયાર્થ–-દોક્ષા લીધા પહેલા હું નથી કેમ ન બન્ય, અને હવે નાથ કેમ બની ગયે છુ તે હે રાજન ! તમારા આ સદેહની નિવૃત્તિ નિમિત્તે જણ पानु ६ अप्पा वेयरणी नई-आत्मा वैतरणी नदी । मात्मा मत मारमा જ નરકની વૈતરણ નદી છે કેમકે, એ આત્માજ નરકના હેતુરૂપ હોય છે આ ___२0 अप्पा मे कृट सामली-आत्मा मे कृट शाल्मलि सेवी आत्मा भटनी मार -પીડાજનક સ્થાનની માફક-યાતનાના હેતુરૂપ હોવાથી-નરકમાં રહેલા વૈકિય શાભલી