Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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তামামা याकृतः। च-पुन. भोगर्यदय निमन्त्रिता'। दे भदन्त ! मेम्म त संरमप राध मृप्यत-क्षम वम् ॥५७।।
सम्पत्य ययनापिसहारमाहमृलम्-एव थुणिताण स रायंसीहो,-णगारसीह परमोड भत्तिए । सओरोहो सपरियंणो सबधवो, धम्माणरत्तो विमलेण चेयसा ॥५८॥ अससियरोमकूवो, काऊण ये पयोहिणं । अभिवदिऊँण सिरसा, अहयाओ नराहिवो ॥५९॥ छायाएसस्तुत्वा स राजसिंहः, अनगारसिंह परमया भत्तया।
सावरोध सपरिजन सगन्धवो, धर्मानुरक्तो विमलेन चेतसा।। ५८ उन्धसितरोमकप., कृत्वा च प्रदक्षिणाम् ।
अभिव द्य शिरसा, अतियातो नराधिप• ॥५९|| टीका--'पव युणित्ताण' इत्यादि ।
सावरोध =सान्तःपुर सपरिजन दासोदासादिवर्गसहित' सरान्धव = वधुवर्गसहितो राजसिंह. राजा सिंहदव राजसिंहो मृगतुल्यापरनृपेषु तस्य सिंह तुज्झे-युष्माकम् ) आपके (जो-य) जो (ज्ज्ञाणविग्घो कओ-ध्यानविघ्न' कृत)ध्यान में विन्न किया है तथा (मोगेहि निमतिया-भोगै निमविता) मोगों द्वारा आपको आमत्रित किया है, हे भदन्त ! (मे-मे) मेरा.(त सव्व-तत्सर्वम् ) वह सर अपराध (मरिसेह-मृन्यत) आप क्षमा करें।०७|
अब अध्ययन का उपसहार करते हैं-'ए' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(सओराहो-सावरोध) अन्त पुर सहित (सपरियणोसपरिजन) दासीदास आदि परिजन सहित तथा (सवधवो-सबान्धव) बन्धुवर्ग सहित (स-स) वे (रायसीहो-राजसिंह ) राजाओ मे सिंह जैसे (नराहियो-नराधिप.) श्रेणिक राजा (परमाए भत्तिए-परमया भत्तया) अति उत्कृष्ट भक्ति से (अणगारसीह-अनगारसिम्) अनगारों मे सिंह युष्माकम् माना जा-य. ध्यानमा ज्झाणविन्नो को-यानविघ्नः कृत विन नामेल छ तथा भोगेहि निमतिया-भोगै निमत्रिता सोपालगवाना ४ 4 मारे आपने सामत्रित ४रेस छ महत! मा५ मे मे भास त सन्च-तत्सर्वम् मे सधमा अपराधानी मरिसेह-मृष्यत क्षमा ४२ ॥५॥
वे अध्ययन पसार ४२. --"ए" त्या
मन्वयार्थ --सओरोहो-सावरोव सन्तपुर सहित सपरियणो-सपरिजन हासीहास माहिरिन सडित तथा सवधवो-सबान्धव मधु पग सात स-स a रायसीहो-राजसिंह २ मामा भिडा २० परमाए भत्तिए