Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्सराप्यया में क्षम'क्षान्त्या क्षमागुणेन नत्यत्तया क्षमते-दनाना दुर्भातिाकि सहत य. म तथा, स शक्तोऽपि क्षमागुणेन परोपटसहनी, सयत'सम्सम्यग यत प्रयत -जिनामाराधने तत्पर. समयमान्त पदम् वामगरीनववाटिका विशुद्धब्रह्मचर्यसेग्नशील महानतमतिपच्या म्पत' मिदम्य ब्रह्मण्यस्य पुन ब्रह्मचारीति क्यनेन तस्य दूरनुचरस्त मृपितम् तपा-मुममाहिनेन्दिराशी कृतेन्द्रियश्च भूत्वा सापद्ययागबामन काययोगाना साधयव्यापार परिपनयन्परित्यजन् अवरत-हिरतिस्म । आत्मनोऽनुशासनपक्षे चरदिनिन्द्राया-हे आ त्मन् ! मिक्षु सर्वेषु भूतेषु दयानुकम्पी क्षान्तिक्षम सयनवमचारी मुममाहिन्द्रियतक के जीवों पर दयानुरूपी ने-दया से रक्षा करने स्प परिणति से अनुरूपन शील ने (ग्वनिम्पमे-क्षान्तिक्षमः)क्षान्तिगुण से-क्षमा रूप आत्मिागुण से-अक्ति से नही-दुर्जनों के दुर्वचनोको महन करने वाले वने (सजयरभयारी-सयतव्रत्मचारी) सयतभार से ब्रह्मचारी बने नववाड से विशुद्ध ब्रह्मचर्य के सेवनमे लपलीन रहे-तथा (मुसमाधि इदिए-सुसमाहितेन्द्रिय) पच इन्द्रियों को वश में करके (सावजजोग -सावद्ययोगम् ) वे मन, वचन एव काय इन तीन योगों के सावय व्यापारों का (परिवजयतो-परिवर्जन् , परित्याग करते हुए ही (चरेजअचरत् ) श्रुतचारित्ररूप धर्म के पालन करने मे अथवो विहार करने मे निरत हुए | आत्मानुशासनपक्षमे "चरेज" की सस्कृतछाया "चरेत्” ऐसी कर लेनी चाहिये। उसका भाव तब इस प्रकार हो जायगाअर्थात् समुद्रपाल मुनि ने अपनी आत्मा को इस प्रकार समझाया-कि हे आत्मन् । भिक्षु समस्त जीवों पर दयावान् क्षान्तिक्षम, सयतब्रह्म દયાનકડી બન્યા-દયાથી રક્ષા કરવા રૂપ પરિણતિથી-અનુક પન શીલ બન્યા વાતાવ क्षान्तिक्षम क्षान्ति मुख्थी-क्षमा३५, मिगुशुथी-मति नहि नाना हुयनान सहन ४२१वामा मन्या सजयबभयारी-सयतब्रह्मचारी सयतमाया બ્રહ્મચારી બન્યા નવાવાડથી વિશદ્ધ બ્રહ્મચર્યના સેવનમાં લવલીન રહૃાા તથા सुसमाहिददिए-सुसमाहितेन्द्रिय पाय धन्द्रियाने पक्षमा ४१२ ते यावज्जजोगसावधयोगम् मन, पन्यन गने या मात्र योगोना सावध व्यापाशनु परि वजयतो-परिवर्जन परित्याग रान चरेज-अचरत श्रुत यरित्र३५ ५मनु पालन २पामा मथवा विडार उरामा निरत यया मात्मानुशासन पक्षमा “चरेज"ना सकृत छाया "चरेत" मेवी ४१ वी मध्ये मानो ला त्यारे मा २॥ થઈ જશે અર્થાત્ સમુદ્રપાલ સુનિએ પિતાના આત્માને આ પ્રકારે સમજાવ્યા કે
અમિન ' ભિક્ષુ સઘળા છ તરફ દયાવાન, ક્ષાતક્ષમ, સ યત બ્રહ્મચારી અને