Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ. २१ पकान्तचर्याया समुद्रपालप्टान्त रोत. तया-गहा निन्दा प्रति नारनता ऽभवत्-अपमानताऽपि खेद ना करोत् । न चापि पूना गहा च प्रति असनन्-'मम मम्मानो भवतु, अपमानो मा भवतु' इत्येव पिचारासतोऽपि न जात । एवं भूत स सयत =मुनि ऋजुभावम् आर्जन प्रतिपय अगीकृत्य विरत =पापानिरत्त सन् निवाणमार्ग-सम्यग्नानादिरूपम् उपैति माग्गेति। आत्मनोऽनुशासनपक्षे-हे आत्मन् ! महर्षि. पूना पति जनुन्नतो भवत् गहों प्रति नावनतो भवेत् । न चापि पूना गहीं च प्रतिसजेव= सक्ता भवेत् । त्वमपि तथैव भग। एर समुद्रपालमुनिरात्मानमनुशासितवान् । भी उनको जरा मा भी गर्व का लेश नहीं या नया (गरिह नारणगही नावनन.) गर्दा-निन्दा होने पर भी उनको घोडा सा भी खेद नहीं होता था(नयाविय गरिह सजए-नचापि पूजा गर्दा अमजत) और न उनको रोमाविचार ही होता था कि कोई मेरी प्रगला रे या निन्दा करे अर्थात्-'मेरा मन्मान हो' ऐमा उनको विचार नहीं आता था और मेरा कभी अपमान न हो' सी चिन्ता नहीं होती थी। इस प्रकार की स्थिति सपन्न वे मुनिरान (उज्जु भाव पडिवज-जुभाव प्रतिपद्य) आर्जव भाव को अगीकार करके (विरण-विरत) पापों से विरक्त होते हा (निव्वाणमग्ग उवेड-निर्वाणमार्ग उपैति) सम्यग्ज्ञानादिरूप निर्वाणमार्ग को प्राप्त करने मे सावधान रहते थे। आत्मानुशासनपक्ष मे-हे आत्मन् । मर्पिजन अपनी प्रशसा होने पर भी गर्व नहीं करते है तथा अपमान होने पर खेद नहीं करते है। और न उनके चित्त मे प्रशसा की चाहना जगती है और न अपमान होने पर खेदभाव की जाग्रति है। उनके परिसरसोय गवना मा न त तथा गरिह नावणए-गर्दा नावनत. नि यी ५ तेभने १२ समये यो न तो न याचि पूय गरिह सज्ए-न चापि पूजा गहाँ अमहत् भने उनी मेरे पिया२ ५५ यते। न , माग પ્રશ સા કરે અથવા નિ દા કરે અર્થા-“મારૂ સન્મ ન થાય ” આવો વિચાર તેમને આ વાતો ન હતો “મારૂ કદી અપમાન ન થાય” એવી ચિતા તેમને થતી ન हुती मा प्रा२नी स्थिति स पन से भुनिरा उजुभाव पडिबज्ज-ऋजुभाव प्रतिपद्य मालाबने 24 गी२ रीने, विरए-विरत ५ पाथी वित थता बता निव्वाण मग्ग उवेद-निर्वाणमार्ग उपैति सभ्य ज्ञान IE 3५ निभान प्रास વામાં સાવધાન રહેતા હતા આત્માનુશાસનપક્ષમાં હે આત્મન ! મહીજન પિતાની પ્રશંસા થવા છતા પણ ગર્વ કતા નથી, તથા અપમાન કરવાથી પેદ કરતા નથી તેમ જ તે તેમના ચિત્તમાં પ્રશ સાની ચાહના જાગે છે અને ન અપ