Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनमः समुद्रे तस्या दारको जातः। यो दि समुद्रपालेति नामसरोऽभून् । समुढे जात त्वात्तस्य समुद्रपाल इति नाम मातापितभ्या कामिति भार' | मूलम्-खेमेणं ओगए चंप, सावए वाणिर घेर ।
सवर्डेड घरे तस्स, दौरए से" सुहोडए ॥५॥ जया-क्षेमेण आगतशम्पा, आपसे पाणिनो गृहम् ।
सरद्वैते गृहे तस्य, दारक स मुपोचितः ॥५॥ टीका-'खेमेग' इत्यादि।
पलितनामा स श्रावको पाणिज' क्षेमेण कुशलेन चम्पा, तर चम्पाया गृह-स्वटह च आगतः अध तस्य-पालितस्य गृहे मुसोचितः मुग्वयोग्य = सुकुमार स दारक. सरदते ॥५॥ पसवड-पालितस्त्र गृहिणी समुद्रे प्रसूते) पालित की उस पत्नी ने चलते २ समुद्र मे ही पुत्रको जन्म दिया। पालिस ने समुद्र में उत्पन्न होने के कारण (अह समुद्दपालिनि नामा दारण तहिं जा-अथ समुद्रपाल इति नामक दारक तत्र जात.) बच्चे का नाम वही पर समुद्रपाल ऐसा रख दिया ॥४॥
खमेण आगए' इत्यादि। __अन्वयार्य-वह पालित (सावए वाणि-श्रावकः वणिज ) श्रावक चणिक (खेमेण-क्षेमेण) कुशलपूर्वक (चप घर आगरा-चम्पाम् गृहम् आगत) चम्पा नगरी मे अपने घर आ गया (तस्स घरे-तस्य गृहे) उस पालित आवक के घर पर (से दार-स दारक.) वह समुद्रपाल बालक (सुहोदरा सवइ-सुखोचित्तः सवद्धते) आनर के साथ बढने लगा ॥८॥ गृहिणी समुद्र प्रसते मा भुभाश भ्यान पालितनी पत्नी से पुत्रने भन्म भाप्यो समुद्रमा म यवान औरणे अह समुदपालित्तिनामए दारए तहि जाए-अथ समुद्रपाल इति नामक दारक जात पालित म पुरनु नाम તેજ વખતે સમુદ્રપાલ એવું રાખ્યું છે
"खेमेण आगए" त्या अन्वयार्थ:- पासित सावए वाणिए-श्रावक वाणिज श्री 4gs खेमेणक्षेमेण शत शत चप घर आगए-चम्पाम् गृहम आगत य पानगरीमा पातान धेर पसायी गया तस्स घरे-तस्य गृहे पालित श्रापडने त्या Gruri यस से दारए-स दारक में समुद्रपा नाभना माण पशु त्या मुहोइए सबढामुखोचित सवर्धते माननी साथे पंधवा माया ॥॥