Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियशिनी टीका अ. १ एकातचयाया ममहपालटष्टान्त
६३९ समुद्रपाल: : यग- ययम्यान गन्तीति र यगस्त स्थाने नीयमान मिया । यमण्डनगोभार-मध्यम्यम्बधाईम्य यानि मण्डनानी-रक्तचन्दन
खारादीनि ते. शोभाकान्ति रिय स च यमण्डनगोमागस्त, यधपाई रमपि चार पश्यति ॥८॥ मलम्-तं पासिऊण सवेग, समुदपालो इणमब्बी ।
अहो अमुहाण कम्माणं, निजाण पावगं ईम ॥९॥ छाया--1 टवा मवेग, समुद्रपाल उदमवीन् ।
हो अगुभाना धर्म गा, निर्याण प पमिदम् ॥९॥ टीका--'त' इत्यादि
समुद्रपार तम्यापियाकार्यकारिण बधाई चौर दृष्ट्वा सवेग-सवेगका रणम् इदयमाण पचनमनत्रीत-उक्तवान । यदवीत्तदुच्यते-'अहो' 'त्यादिनाअहो ! द-पुरो दृश्यमानम् अशुभाना मणा पापकमअशुभ निर्याण फम, यदय पराको धार्य नीयते ।९।। अन्यदा कदाचित्) किसी समय समुद्र पाल (पासाग लोयणे ठीओप्रासादालोकने स्थित ) अपने प्रासाद के गोग्व में बैठा हुआ था उसने (वज्झा। वज्झमटणमोभाग वज्झ पासड-व यगम् वध्यमटनशोभाक वय पश्यति) वधस्थान की ओर ले जाते हुए तथा वन्य व्यक्ति के योग्य वेप से सजित किये गये एक बयको-किसी चोर को देवा ॥८॥
'त पामिऊग' इत्यादि ।
अन्वयार्य-(त पासिउण-तम् दृष्ट्वा) उस चोर को देखकर (समुद्दपालो-समुद्रपाल.) समुद्रपालने (सवेग-सवेगम्) सग के कारणभूत (दणमव्यवी-दद अब्रवीत) इन रचनो को कहा-कि-(अहो असुहाण कम्माण इम पावग निजाण-अहो अशुभाना र्मणा इद पापक निर्याणम्) કે સમય સમુદ્રપાળ પિતાના મહેલને જરૂખામાં બેઠેય હતું ત્યારે તેણે વકફ वज्झमडणसोभाग वज्झ पासइ-व-यगम् व यमडनशोभाक वज्झ पश्यति मे । ने વધસ્થાન તરફ લઈ જતે છે તથા તેને વધ કરનાર જલાદને જે ઘટા
"त पासिउण" त्यादि
अन्वयार्थ:--त पासिउण-तम् दृष्ट्वा मे थारने ने समुदपालो-समुदपाल: समुद्रपा सवेग-सवेग सवेगना जारभूत । दणमव्यवी-इद अब्रवीत यो ह्या गुमा। अहो असुभाण रम्माण इम पावग निजाण-अहो अशुभाना कर्मणा 'द