Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तगययनसरे
तत:, मूलम्--सर्बुद्धो सो तहिं भयंवं, परंम सवेगेमागओ।
आपुच्छंऽम्मापियंरो, पए अणेगारिय ॥१०॥ छाया--सयुद्ध. म तर भगान, परम सोगमागतः ।
आपछयागापितरी, मननत्यनगारिताम् ॥१०॥ टीका--'सबुहो' इत्यादि।
तर-पासादालोकने स्थितः स समुद्रपाला परमम्प्रत्युत्कृष्ट सवेग-वैराग्गम् __ आगाताम्माप्त समुद्धो जात.-स्पय गाध मातवान। भगवान चराग्य पान स समुद्र पाला अम्मापितरोआपू -पृष्ट्वा अनगारिता मनमति अनगारो जात इत्यर्थः ॥१०॥
मरज्यानन्तर स समुद्रपाल मुनिर्यथा या प्रति हतमान, यथानाऽऽत्मान मनुशासितवास्तथैवोच्यतेमूलम्-हित्तु संग च महाकिलेस, महत्तमोह कसिण भयावह । परियायधम्म अभिरोर्यइजा, वयाणि सीलाणि परीसहे ये ॥११॥ असे अशुभ कमी का यह अशुभ फल है जो यह विचारा प्रस्थान की और मारने के लिये ले जाया जा रहा है ॥२॥
तत'--- "सवुद्धो' इत्यादि।
अन्वयार्थ---(सो तहिंस तत्र) समुद्रपाल को गोख में बैठे २ ही (परम सवेगमागओ-परम सवेग आगत) सर्वोत्कृष्ट वैराग्य प्राप्त हाँ गया। (सवुद्धो-सद्ध) स्त्रय प्रतियुद्ध हो कर (भयव-भगवान् ) वैराग्य सपन्न बने शा उस समुद्रपालने (अम्मापियरो आपुच्छ-अम्बापितरी आपृच्छय) मातापिता से पूछकर (अणगारिय पन्धए-अनगारिताम प्रक जितः) दीक्षा धारण करली ॥१०॥ पापक निर्याणम् अशुभ माना मा अशुभ ॥ छ, रथी म मियाशने ३५ સ્થાન ઉપર મારવા માટે લઈ જવામાં આવે છે પલા
तत-"सबुद्धो" त्याहि ।
स-याथ-सो तहि स तत्र समुद्रपालन अमामा । मे810 परम सर्वेग मागओ-परम सवेग आगत सवाट वै१५ प्राप्त थ६ आया, भने सबुद्धोसबुद्ध पात ते ४ प्रतिशुद्ध धने भयव-भगवान् ३२१२५ सपन्न अनेसा या से समुद्रपा अम्मापियरो अपुच्छ--अम्बापितरी आपृच्छय मातापिताना माशा भगवान अणगारिय पव्वए-अनगारिताम् प्रत्रजति दीक्षा 2nil२ ४ ॥१०॥