Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तगाध्ययनाने टीका--'तुम्भ' इत्यादि ।
हे महर्षे ! युप्मामि गलु-निश्चयन मनुष्य जन्म मुग्यम् । मनुष्यज न्मनो यत्फल ससारनिस्तरणस्प तद् भनि समुपधमिति मारः। चम्पुन युष्माभि. लाभा: पूर्णरूपादि प्राप्तिरूपा धर्मविशेषमाप्तिरूपा या मुल्या-मुप्लुत्या प्राप्ता. । सुलब्धत्वे हेतुरुत्तरोत्तरगुणप्रकर्पता। च-पुनः हे महर्षे ! तत्वतो यूयमेव सनाथा समन्धराश्च स्थ, य-कारणाव यूय निनीतमाना मार्गे-पथि स्थितामुश्रामण्यमुपगता इत्यर्थ । मुलब्धजन्मत्यादी जिनमार्गस्थिति हेतु ॥५५॥ मूलम्-त सिं पाहो अाहाणं, सव्वभूयाण संजया ।।
खाममि ते महाभाग !, इच्छामु अणुसासित ॥५६॥ फिर राजा कहता है-'तुभ' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(महेसी-मह) हे महामपि ! (तुभ माणुस्स जम्म सुलद्ध-युप्माभि' खल मनुष्य जन्म सुलन्धम्) आपने इस मनुष्य जन्म को अच्छा जाना है अर्थात-मनुष्य जन्म का जो फल होना चाहीये वह आपने प्राप्त कर लिया इसलिये आपका मनुष्यजन्म जाना सफल हो गया है तथा (तुम्भे-युष्माभि) आपने (लाभा सुलद्वा-लाभा सुलधा.) वर्ण रूपादि पाप्ति रूप अथवा धर्मविशेष प्राप्ति रूप लाभों की सफलता प्राप्त कर उनको सुलब्ध बनाया है। तथा है महामुनि (तुन्भे सणाहा सबधवा यूयम्-सनाथा. सबान्धवा) आप ही वास्तविक रूप मे सनाथ एव चान्धव-सहित है (ज तुम्भे-यद यूयम् ) क्यों कि जो आप (जिणु त्तमाण मग्गि ठिया-जिनोत्तमाना मार्गे स्थिता) जिनोत्तमों के मागे मे स्थिर हो रहे हैं ॥५५॥
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मन्वयार्थ-महेसी-मह 8 महर्षि। तुम्भ माणुस्स जम्म सुलद्ध-युप्माभि खलु मानुष्य जन्म सलब्धम् मापे मा भनुम्य भने सारी शत nga छ मात મનુષ્ય જન્મનુ જે ફળ થવું જોઈએ તે આપે પ્રાપ્ત કરી લીધુ છે, આ કારણે मापने मनुष्य म स गयेस छ तुब्भे-युष्माभि मापे लाभा मुलद्धालाभाः सुलब्धा. पण ३५ प्राप्ति३५ अथवा धर्म विशेष प्राति३५ aaiनी सकता प्राप्त शतेन सुखाय मनावत छ तथा महामुनि तुम्मे सणाहा सवधवा-ययम् सनाथा. सबाधा. या वास्तवि४ ३५मा सनाय भान पायव सहित छ ज तुम्भे- यत् ययम् भ, रे या५ जिणुत्तमाण मग्गिठिया-जिनो त्तमानामार्गस्थिता ना त्तममा उत्तम मार्गमा स्थित य गये छ। ॥५॥