Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ०० महानिग्रन्थम्वरुपनिरूपणम् छाया-त्यममि नाय. अनाबाना, सर्वभूताना सयतः।
क्षमयामि त्वया महाभाग !, इन्द्रामि अनुशासितम् । ५६।। टीरा--'तसी' इत्यादि ।
हे सयत हे मुने! त्वम् अनाथाना=म्ब स्व योगक्षेमकारिरहिताना सर्व भूताना-मनीवाना नाथ =ोगक्षेमकारकोऽसि, पट्कायनीररक्षणे गृहीतरतस्वात् । हे महाभाग घयाऽह स्वापराध क्षमयामि । तथा-हे मुने! भवतोऽ हमात्मानमनुगामिनु-शिक्षयितुमिच्छामि ॥५६॥
पुन क्षमापणामेर विशेषगाह-- मूत्रम्-पुच्छिंऊण मए तुझे, झाणविग्यो उ जो कओ।
निमतिया यं भोगेहि, त' सव्व मरिसेहें मे" ॥५७॥ डाया-पृष्ठा मया युष्माक, ध्यानविनस्तु यः कृतः।
निमन्त्रिताच भोगे, तत्सर्व मृप्यत मे ५७॥ टीका-पुच्छिऊण' इत्यादि । हे मुने! पृष्ठा प्रश्न कृत्वा मया युप्माफ ध्यानविन्न ध्यानान्तरायस्तु
अब राजा महामुनि से ग्बमाता है-'तसि' इत्यादि। अन्वयार्य-सजया ?-सयत) हे मुनिराज ! (त अहाण सच भूयाणणाहोसि -स्व अनापाना मर्वभूताना नोय. असि) अपने २ क्षेम योग से रहित अनाथों-सर्वभूतों के योग क्षेम कारक होने से आप एकमात्र नाय है। (महाभाग ! ग्वामेमि-महाभाग:-क्षमयामि) हे महाभाग !मैं अपने अपराधों की क्षमा चाहता हु । तथा (अणुसासि इच्छोमु-अनुशासितु इच्छामि) आप से अपने आप को अनुशासित होने की प्रार्थना करता हू ॥५६॥
फिरक्षमापनाको विशेप रूपसे कहते हैं-'पुच्छिऊण' इत्यादि। मैंने अन्वयार्थ हे मुने! (पुन्छिऊण-पृष्ट्वा) प्रश्न करके (मग-मया) 6वे २ion महाभुनिन मभव छ--"तसि" त्या
मन्वयार्थ:-सजया-सयत! 3 भामुनि। तअहाण सर्वभूयाणणाहोसि-त्व अनाथाना सर्वभूताना नाय असि पातपाताना मयागावी २खित मनाया-स भूताना योगा पाथी माप ४ भात्र नाथ छ। महाभाग खामेमि-महाभाग क्षमयामि मसाला भा२। अपराधानी मानी पासे क्षमा मागु छु तथा मापनाची अणुसासिउ इच्छामु-अनुशासितु इच्छामि भने मनुशासित पानी પ્રાર્થના કરૂ છુ પા
पछी सभापनाने विशेष ३५थी ४ छ--"पुच्छिऊण" त्या मन्वयार्थ--डे भुनि । पुन्छिउण-पृष्ट्वा प्रश्न शेन मए मया भे तुज्झो