Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रियदर्शिनो टीका २१ पकान्तचयांया समुद्रपालइप्टान्त
छाया-पिण्डे व्यबहरते, पाणिजो ददाति दुहितरम् । . ता मसचा प्रतिय, स्वदेशमय भस्थितः ॥३॥ टीपा-पिटे' इत्यादि।
पिहुण्डे-पिण्डनगर व्यहरते व्यापार कुर्वते तम्मै पालिताय श्रावक वणिजे तद्गुणाकृष्ट कश्चिद् पाणिजो दुहितर-पुत्री ददाति-अदात । अथ कृतदारपरिग्रह. स पारित' फियत्कालानन्तर समत्त्वासगी ता पणिपुत्री प्रति गृह्यआहाय देशम् अगदेश चम्पानगरी प्रति मस्थितः प्रचलित ।३॥ मूलम् अहं पालियस्त घरेणी, समुम्मि पसंवड़ ।
अहं दारए तहि जाए, समुईपालित्ति नामए ॥१॥ आया--अय पालितम्य गृहिणी, समुद्र मनते।
___ अथ दारकस्तत्र जात , समुद्रपालेति नामकः ॥४॥ टीका-'अ' इत्यादि। भय-अनन्तर पालितस्य गृहिणी भार्या समुपमूतेप्रमनाती। अब तक "पेटुटे' इत्यादि।
अन्वयार्य-(पिडे व परतस्म बागिओ धृयर देइ-पिएण्टे व्यवहरते वाणिज दुहितर ददाति) पिहुण्ड नगर मे व्यापार करने वाले उस वणिक श्रावक को किसी वणिक व्यापारी ने अपनी पुत्री दी अर्थात्-किसी वहा के वणिक्ने अपनी लड़की का विवाह उस पालित श्रावक के साथ कर दिया। वह पारित श्रावक कितनेक काल के बाद वहां से (ममत्त त पइगिज्झ-ससत्त्वां ता प्रतिगृध) सगौं उस अपनी मार्या को साथ लेकर (सदेस पत्थिओ-स्वदेशम् प्रस्थितः) चपानगरी की ओर चला ॥३॥
'अह पालियस्स' इत्यादि। अन्वयार्य--(अह-अय) इसके बाद (पालियस्स घरणी समुद्दम्मि "पिहुडे" त्यादि
मक्याथ-पिटुडे ववहरतस्स वाणिो धूयर देश-पिहुण्डे व्यवहरते वाणिज કુદિતર રાતિ પિડ નગરમાં વ્યાપાર કરવાવાળા એ વણિક શ્રાવકને કઈ વણિક વ્યાપારીએ પિતાની પુત્રી આપી અર્થાત ત્યાના કેઈ વણિકે પિતાની પુત્રીને વિવાહ એ પાલિત શ્રાવકની સાથે કરી દીધે એ પાલિત થાવક કેટલાક કાળ પછી त्याथी ससन त पइगिन-स सत्वा ता प्रतिगृह्य पातानी साना सवी से पत्नीन साधे साउने सदेस पत्थिओ स्वदेश प्रस्थित ययानगरी त२५ मापानीज्यो ॥3॥
"अह पालियस्स" त्या गा-पयार्थ--अह-अथ पछी पालियस्स घरणी समुदम्मि पसवइ-पालितस्य