Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
६२४
उत्ताध्ययनसूत्रे महानिर्ग्रन्थमार्गगमनम्य यत्फार तदुगने
मूलम् - चरितमायोरगुणन्निए तओ, अणुत्तर सजम पालियोण । निरासंवे सखवियाण कम्म, उवेई ठोणं विउलुत्तम धुव ॥५२॥ छाया चारिनाचारगुणाचितस्ततः, अनुत्तर सयम पालयित्वा।
निरास सक्षपय्य धर्म, उपैति स्थान रिपुलोसम ध्रुवम् ॥५२॥ टीका-'चरित' इत्यादि।
चारिनाचारगुणान्वितः चारित्रस्य आचार: आचरणम्-आसेवन स एव गुणस्तेन अन्वितोयुक्त , यद्वा-चारित्राचार:-चारित्रासेवन, गुणो ज्ञान, ताभ्यामन्वितो-युक्तः साधुः तत =महानिर्गन्यमार्गगमनाव-अनुत्तर-पधान सयम यथाख्यातचारित्रात्मक पालयित्वा: आसेव्य, निरास्त्रकाम्पाणाविपाताधासनमहानिर्ग्रन्थाना पथा जे.) महानिर्ग्रन्थों के मार्ग से चलो इस गाथा द्वारा यह प्रकट किया गया है कि इस सब कथन को सुनकर हे राजन् ! तुम्हारा अब क्या कर्तव्य है-अनाथीमुनिराज श्रेणिक महाराज से कर रहे हैं कि-वीतराग प्रभु द्वारा निर्दोपरीति से कथित इस ज्ञानगुणोपपेत अनुशासन को सुनकर तुम अब कुशीलों के मार्ग का परित्याग करते हुए महानिर्ग्रन्थों के मार्गका अनुसरण करो। इसी में तुम्हारी मलाई है ॥५१॥
महानिर्ग्रन्थ के मार्ग में चलने का फल कहते है-'चारित्त' इत्यादि। __ अन्वयार्थ-(चारित्तमायारगुगन्निए-चारित्राचारगुणान्वितः) चरि त्रके आचरणरूप गुण से सपन्न अथवा चारित्र सेवन एव ज्ञान रूपगुण से अन्वित साधु (तओ-तत) महानिर्गन्थ के मार्ग पर चलने से (अणुत्तर सजम पालियाण-अनुत्तर सयम पालयित्वा) प्रधान सयमમહ નિગ્રન્થના માગથી ચાલે આ ગાથા દ્વારા એ પ્રગટ કરવામાં આવેલ છે કે, આ સઘળી વાત સાંભળીને હે રાજનતમારૂ હવે શું કર્તવ્ય છે-અનાથી મુનિ રાજ અણીક મહારાજને કહી રહેલ છે કે વીતરાગ પ્રભુદ્વારા કહેવાયેલા આ શાન ગુપપેત અનુશાસનને સાંભળીને તમે હવે કશીના માર્ગને પરિત્યાગ કરીને મહાનિન્થોના માર્ગનું અનુસરણ કરે એમાં જ તમારી ભલાઈ છે પ૧
महानि-याना भाभा यासवाना ५ ४९ छ-"चरित त्या
भ-क्या-चरितमायारगुणनिए-चारित्रमाचारगुणान्वित यारित्रता मा ચરણ રૂપગુણથી સંપન્ન અથવા ચારિત્રસેવન અને જ્ઞાનરૂપ ગુણથી અન્વિત સાધુ तओ--तत मानिन्यना भी 6५१ यादवाथा अणुत्तर सजम पालियाण-अनु