Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रेयशिनी टोका अ २० महानि धरुपनिरुपणम्
'जो' इत्यादि।
यो द्रव्यमुनि. लक्षण-सामुद्रोक्त शुभाशुममूचा स्वीपुस्पचित, तथास्वप्नशास्त्रोक्त म्वप्नानां शुभाशुभलभण फल प्रयुञ्जानो-गृहस्थाना पुरतो निवेदो भवति, नया-यो निमित्त कौतूहलसमगाह -निमित्त भूकम्पादिक, कौतूह लम् अपत्याधर्थ स्नपनादिक, नयो. सम्प्रगाह सम्मसत्तश्च भवति, तथा च य कुहेटविधास्रबद्वारजीगरी-कुटविया अलीराध्यविधापि मन्न तन्त्र ज्ञानात्मिका विद्यास्ता एक कर्मवन्धहेतुतयाऽऽस द्वारागि नीवितु भीटमस्येति तथा, मन्त्र तन्त्रादि-कुत्सित विद्याद्वारा यो जीविका निति, एव विध स द्रव्यमुनिः तस्मिन कालेलक्षणस्वप्ननिमित्तमा नुहलकुटविधाजनितपातरफरोपभोगकाले भरण-त्राण न गन्छतिन्न प्राप्नोति। त द्रव्यसाधु न कोऽपि नरकतिर्यग्यो न्यादिभवाद् दुःग्वाद् रक्षतीति भाव ॥४५॥
'जो' इत्यादि।
अन्वयार्थ--(जो-य) जो द्रव्यमुनि (लस्वण सुविण पउजमाणेलक्षण स्वप्न प्रयुज्ञान:) मामुद्रिक शास्त्रोक्त एव शुभाशुभ के सूचक स्त्री पुरुपों के चिह्नों को तथा स्वमशास्त्रोक्त शुभाशुभ स्वमों के फलको गृहस्थों को रहता है (निमित्तकोहल सपगाढे-निमित्तकौतृहलसमगाद.) तथा जो भूकम्प आदि निमित्त को, पुत्र आदिकी प्रामि के निमित्त स्वप्न, आदि कौतुहल को जो अन्यजनों के लिये कहता है तथा (कुड विनासवदारजीवी-कुहेट विद्यासवहारजीवी) तथा जो कुहेटविधाओं द्वारा मत्र तत्र आदि कुत्सित विद्याओं द्वारा-जीविका का निर्वाह करता है वर (तम्मिकाले सरण न गच्छई-तस्मिन् काले शरण न गच्छति) उस काल में उन २ अपने कर्तव्यो द्वारा नरकादिक में पतन होते समय सुरक्षित नहीं हो सकता है।
"जो" या !
अन्वयार्थ-जो-या रे द्रव्य मुनि लवण सुविण पउजमाणे-लक्षण स्वप्न प्रयुञ्जान• सामुद्रि शासोरत भने शुभाशुमने नारतमा खी १३वाना मिन्हान तथा पन थालत शुभाशुस २१नाना स्थान ४ छ, निमित्तको उहलसपगाढे-निमित्तकौतूहलसमगाह तथा भू४५ मा निभित्तने, पुत्र આદિની પ્રાતિ નિમિત્ત સ્વપ્ન આદિના કુતૂહલને જે અન્ય જને માટે કહે છે તથા कुहेड विजासबदारजीवी-कुहेट विद्यास्रवद्वारजीवी २ भेली विधायी बारामत्रतत्र આદિ મેલી વિદ્યાઓ દ્વારા–જીવીકાને નિર્વાહ કરે છે તે એ કાળમાં જે તે પિતાના કર્તવ્ય દ્વારા નકદિકમાં પતન થતી વખતે સુરક્ષિત બની શકતા નથી