Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका स २० महानि यसपनिम्पणम्
कृतो दीक्षाग्राणानन्तर व नाथो जातः, न ततः पूर्वम् ? इत्याह-- मृगम्-अप्पा नई वेयरंणी. अप्पा में कूडसामली।
अप्पा कामहा घेण, अप्पा मे" नन्दणं वेणं ॥३॥ आया--आत्मा नही चैतरणी, आत्मा मे शाल्मलि।
मात्मा कामदुधा येनु , आत्मा मे नन्दन उनम् ॥३६॥ टीमा-'अप्पा' इत्यादि--
हे राजन । आत्मा आत्मैव नरक सम्बन्धिनी वैतरिणी नदी। उद्धत म्यात्मनो नरकहेनुत्वान् । अतएर मे मम आत्मैव कुटमिर पीडाजनम्म्यानमिव यातना हेतृत्वात, गाल्मलिः नरसम्यो क्रिय शाल्मक्षिोऽस्ति । तथा-आन्मय के उपाय का परिज्ञान वाला होने से तथा उनका सरक्षण करने वाला होने से में नाय न गया ह ॥३॥
दीक्षाग्रहण करने पर आप नाथ बने और उसके पहले नाथ नहीं ये सो क्या पारण' इसी को कहते है - 'अप्पा' इत्यादि ।
दीक्षा ग्रहण के पहिले में नाय क्यों नहीं हुआ और अब नाय कैसे बन गया ह-सो हे राजन ! मैं तुम्हारे इम सदेह को नित्ति निमित्त यह कहता है कि यह (अप्पा वेयरणी नई-आत्मा वैतरणी नदी) आत्माउद्धत आत्मा ही नरक की वैतरणी नदी है कि ऐसी आत्मा ही नरक की हेतु होती है इसी लीये (अप्पा मे कृडसामली-आत्मा मे कट शाल्मलि.) ऐसी आत्मा मुझे कट की तरह-पीडाजनक स्थान की तरह-यातना की हेतु होने से-नरक में रहे हुए चक्रिय शाल्मली वृक्ष તેમની રક્ષા કરવાના ઉપાયના ઝનવાળે હોવાથી તથા એમનું સ રક્ષણ કરવાવાળો હવાથી હું નાથ બની ગયે છું રૂપ
દીક્ષા લીધા પછી આપ નાથ બન્યા અને એની પહેલા આપ નાથ ન હતા सेनु शु ९५ छ ? माने ४१ छ-"अप्पा त्याला
અ વયાથ–-દીક્ષા લીધા પહેલા હું નાથ કેમ ન બન્ય, અને હવે નાથ કમ બની ગ છુ તે હે રાજન ! તમારા આ સદેહની નિવૃત્તિ નિમિતે જણા पवानु, अप्पा वेयरणी नई-आत्मा वैतरणी नदी 41 मामा Grत मारमा જ નરકની વૈતરણી નદી છે કેમકે, એ આમાજ નરકના હેતુરૂપ હોય છે આ २) अप्पा मे कृट सामली-आत्मा मे कट शाल्मलि: मेवी मामा भटनी भाव -પીડાજનક સ્થાનની માફક-યાતનાના હેતુરૂપ હોવાથી-નરમાં પહેલા વૈકિય શામલી