Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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कामदुधा कामान-अभिलपितम्बर्गापवर्गमुग्वस्पान दोधिप्रपूरयति या सा तथा, धेनु गामधेनुरस्ति । तथा-मे मम आत्मेर नन्दन चन-चित्ताहाटवत्तानदन उनसदृशमस्ति ।३६|| मूलम्-अप्पा कत्ता विकत्ता य, दहाणं यं सुहाण य ।
अप्पा मित्तममित्त , दुप्पट्टिय सुपट्रिओ ॥३७॥ छाया-आत्म कर्ता दिन च, दुःखाना च मुग्वना च।
आत्मा मित्रममित्र च, दुष्प्रस्थित मुमस्थित. ॥३७॥ टीका--'अप्पा' इत्यादि--
हे राजन् ! दु खाना व सुग्वाना च कर्त्ता आत्मैव, च-पुनस्तेपा विता विक्षेपका -निवारक , आत्मैय । यत एवम् अत:-दुरपस्थितममम्थितः दुप्प स्थित -दुप्टपस्थित महत्तो दुराचरणकारक, सुमस्थित गुप्ठपस्थित सदनु ष्ठान कारक, अनयो कर्मधारय , आत्मैव मित्र च अमिर च भवति । दुप्प जैसी है। तथा (अप्पा कामदुहा घेणु-आत्मा कामदुधा घेनुः) यह आत्मा ही अभिलषित स्वर्ग एव अपवर्ग के मुखो को देनेवाली होने से काम धेनु है। तथा यह (अप्पा मे नन्दण वण-मे आत्मा नदन वनम्) आत्मा ही चित्ताल्हादक होने से मेरे लिये नदन वन के समान है ॥३॥
'अप्पा कत्ता' इत्यादि।
'अन्वयार्थ-हे राजन् ! (दुहाण सुहाण य रत्ता अप्पा-दुःखाना सुखाना च कर्ता आत्मा) दुख एव सुग्वों का कर्ता यह आत्मा ही है, तथा (विकत्ता-विकता) उनका निवारण करने वाला भी यही आत्मा है। जब यह आत्मा (दुपहिय सुपटिओ-दुष्प्रस्थितसुप्रस्थिता) दुराचरणों में फंस जाता है अथवा सदाचरणों में लवलीन हो जाता है वृक्ष की छे तथा अप्पा कामदहा पेणु'-मात्मा कामदुधा धेनु -मामात्मा અભિલષિત સ્વર્ગ અપવર્ગના સુખને આપવાવાળો હોવાથી કામધેનુ છે તથા अप्पा मे नन्दण वण-मे आत्मा नदन वनम् २मा मात्मा पित्तने मान आपन २ હિાવાથી મારા માટે ન દનવન સમાન છે iદા
"अप्पा कत्ता" त्याह! मन्वयाथ---
8 । दहाणसहाण य क्त्ता अप्पा-दखाना मुखाना च कर्ता आस्मा म अने सुमोना ४ता मा सामान छ 'ता विकता-
विर्ता वेनु निवारय ४२ना२ ५ मा मात्मा छे न्यारे 21 मामा दुपहिय सुपहिओदुष्मस्थित सुपस्थिताः रायरमा इसाई नय छ मा सहायमा eqala