Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्सराच्ययनस्त्र
टीका--'आसा' इत्यादि--'गरिसे' इत्यादि।
हे महाभाग ! मेम्मम अधातुरगा सन्ति,दस्तिन' सन्ति, पुरम् नगरम् अन्त पुरम्राज्ञीरन्द च मेऽस्ति । तथा चाहग मानुपान्मनुष्यसम्म चिनो भोगान-मनोज्ञगन्दाथ मुझे। तथा-में-मम आज्ञा भारखलितगासन रूपा, ऐश्वर्य-समृद्धि प्रभुत्व चास्ति । ईटो एचपि सर्वकामसमर्पिते-सवेपा कामाना-मनोजशब्दादीनग समर्पितम् समर्पण पूरण यम्मायापिय सम्पदग्रेसम्पत्मा मति अय मादृशो जनः क्यम् अनायो भवति ? न पदाचिदप्यनाय इतिभावः । हुम्यस्मादेन तस्माद् ! हे भदन्त ! मा मृपावादी-एव भापणे मृपावाद स्यात्, तस्मादेश मा पद ॥१४-१५॥
फिर राजा कहता है-'आमा' इत्यादि।
अन्वयार्थ- हे मुनिराज ! (मे आसा हत्थी मणुस्सा-मे अश्चा. हस्तिनः मनुप्या) मेरे पास अनेक घोडे है अनेस हाथी है अनेक मनुष्य हैं। (पुर-पुरम्) कई नगर भी मेरे पास है। (अतेउर च-अन्त:पुरच मे) अ त पुर मेरे पास है । (माणुसे मोए भुजमि-मानुपान् भोगान् भुजे) मनग्य सरधि-विविध मोगों को मैं वहा आनद के साथ भोगता ह। (आणा इस्सरिय च मे-आज्ञा एश्वयं च मे) आज्ञा एव ऐश्वर्य में मुझे किसी भी प्रकार के सकट का साम्हना नहीं करना पडता है ।। १४ ॥
'एरिसे' इत्यादि।
अन्वयार्थ--(एरिसे-ईदृशे) इस प्रकार 'सव्वकामसमप्पिए सपयरंग म्मि-सकामसमर्पिते सम्पदग्रे) समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाली प्रकृष्ट सपत्ति के होते हुए (कह अणाहो भवद-कथ अनाया भवति) मे
५ रात छ-"आसा" त्यादि
स-या---- मुनिराश । मे आसा हत्थी मणुस्सा-मे अश्वा हस्तिन मनुष्याः भारी पासे सने घाउ छ, भने हाथी छ, भने मनु छ, पुर-पुरम् घया नगर मारे साधीन छ, अतेउर च-अन्त परम च सन्त धुर भारी थासे छे माणुसे भोए भुजामि-मानुपान् भोगान् भुजे मनुष्य समधी विविध सागान हत्या मान नी म छु आणा इस्सरिय च मे-आज्ञा ऐश्वय च मे माशा मन ઐશ્વર્યમાં મારે કઈ પણ પ્રકારની બધાને સામનો કરે પડતું નથી ૧૪
"एरिसे त्या
अन्वयार्थ:- एरिसे-ईदृशे मा आरे सव्वकामसमप्पिए सपयग्गम्मि-सर्वकामसमर्पिते सपदग्रे सधणी छापानी पति ४२वाबाजी प्रष्ट सपत्ति भारी पास डावा छताछ कह अणाहो भवइ-कथ अनाथो भवति मना ४५ ते आई