Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराभ्ययनमा टीमा--'आगासे' इत्यादि।
हे पुन ! भय गुणोदधिः-गुणागानादयान पर उदधिःसमुद्रो दम्तर त्वाद् गुणोदधि'माणसमुद्र आकाशे गहावीत 3ापागामिन्या, गाायाः स्रोत इव दुस्तरः । लोकस्टदमुक्तम् । तथा अन्यनदीनां प्रतिस्रोत इस प्रतिकूल धारेव दुस्तरः । तथा-गा-या सागर हा तातिव्योऽयं , गुगमहानि यथा-चाभ्या समुद्रो दुस्तर , नया गुणोदधिरपि दम्तरः। गाइमनः गायनि यन्त्रणस्य दु शस्यत्वाद् गुणोदधितरण दुप्परमिति गूनागयः ॥३६॥
किंच-'भागासे' इत्यादि।
अन्वयार्थ हे पुत्र ! (गुणोदही-गुणोदधिः) गुणोदधि-ज्ञानादिक गुणरूप समुद्र (आगासे गगसोओव्व-आकाशे गगारोत इव) आगश गामी गगा के प्रवाह ममान दस्तर है। अथवा (पटिसोओन्व दुत्तराप्रतिस्रोत इव दुस्तरः) प्रतिकूल स्रोत के समान तेरना अशरथ है ! अयना (पाहार्दि सागरो चेतरिययो-घारभ्या सागर हव तरीतव्य) बाओं द्वारा जैसे सागर पार करना सर्वा अशस्य है उसी प्रकार मनवचन एव काय का नियत्रण दुशम्य होने से गुणोदधि का तरण भी तुम्हारे द्वारा सर्वथा असभव है। .
भावार्थ-मातापिता समझाते हुए मृगापुत्र से कह रहे है कि बेटा! जिस प्रकार आकाशगामी गगाका-प्रवाह अथवा प्रतिकूल नदा का मल प्रवाह तरा नहीं जा सकता है, और न समुद्र ही बाहुआ द्वारा पार किया जा सकता है उसी प्रकार यह गुणोदधि भी तुम्हारे द्वारा पूर्णरूप से पालित नहीं हो सकता है-पार नहीं किया जा सकता ह (आकाश गगा लौफिक उदाहरण है) ॥३६॥
. .' A-"आगासे" त्याह मक्या-- पुत्र । मा गुणोदंडी-गणोदधि शुधि-ज्ञानls गु३५ समुंद्र आगासे गगसोओन्ध-आकाशे गगास्रोत इव शमी ना बनी भा३४ हुस्तर छ अथवा पडिसोओव्य दुत्तरी-प्रतिस्रोत इव दुस्तर : ३ खातनी भा५४ २७ अशय छ ॥ प्रभारी वाहहिं सागरो चेव तरियन्चावाहुभ्या सागर इव तरीतव्य मामाथी सापसमुद्रने भार ४२वानु सपथ । અશકય છે આ પ્રમાણે મનવચન અને કાયાનું નિય ત્રણ કરવું સર્વથા અશકય છે આ ગુણાધિને તરવુ પણ તમારા માટે સર્વથા અસ ભવ છે . . -
ભાવાર્થ–માતાપિતા સમજાવતા મૃગાપુત્રને કહી રહેલ છે કે, બેટા ! જે પ્રમાણે આકાશગામી બે ગાને પ્રવાહ અથવા પ્રતિકુળ નદીના પ્રબળ પ્રવાહ તરી શંકાતા નથી અને જે તે સમુદ્ર પણ બાહથી પાર કરી શકાય છેઆ પ્રમાણે આ ગુણીકા પણ તારાથી પૂર્ણપણે પાળી શકાય તેમ નથી-પાર કરી શકાય તેમ નથી ૩૬
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