Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका म. १९ मृगापुप्रचरितवर्णनम् पद्वोऽह परमाधार्मिकतै कृपयवकृष्टः र्पणार्पणः दुप्फर-दुःसह यया स्या चथा क्षेपितः यलु ॥५२॥
किं चमूलम्-महाजतेसु उच्छ वा, आरसतो सुभेरव ।
पीलिओम्मि सकेम्मेहि, पाकम्मो अणंतसो ॥५३॥ डाया--महायन्ने उहरिव, आरसन मुभैरवम् ।
पीडितोऽस्मि स्त्रकर्मभिः, पापकर्मा अनन्तशः ॥५३।। टीका-'महाजतुम्' इत्यादि ।
हे मातापितरौ ! पूर्वभवेषु पापकर्मा पापकर्मानुष्ठानकारी सुभैरवम् = अत्यन्तभयङ्कर यथा म्यात्तथा-आरसन्-आकन्द कुन्निह महायात्रेमु=पापिना वृक्ष पर मुझे उन लोगोंने बडी ही निर्दयता से पागों में बाधकर ग्वीचातानी करते हुए फेंका है ॥१२॥
और भी-'महाजतेसु' इत्यादि ।
अन्वयार्थ-हे मातातात । पूर्वमवों मे (पावरम्मा-पापकर्मा) मृत पापकर्म के उदयाधीन में (अणतसो-अन तशः) अनतगार (उच्छवाइक्षुरिब) गन्ने के समान (महाजतेसु-महायपु) पापियों को निप्पिीडित करने के लिये निर्मित यत्रो में (सुभेरव आरसतो-सुभैरव आरसन) घडी बुरी तरह से चिल्लाते चिल्लाते हुए सम्मेहि-स्वकर्मभि) पूर्यो पाजित दुष्कर्मों के निमित्त से (पीलिओम्मि-पीडितोऽसिन) पीडित किया गया है।
भावार्थ-हे माततात । जिस प्रकार महायत्रो में इक्षु पेले जाते है उसी प्रकार में उन यत्रों में एक बार नहीं अनतबार पेला गया । શામલી વૃક્ષ ઉપર મને એ લેકેએ ખબ નિ થતાથી દોરડાથી બાંધીને બે ચા ખેચ કરીને જે કર્યો હતો પર છે
quी प]-"महाजतेसु" त्यादि ___-म-पया- भातापिता पावकम्मो-पापकर्मा ममा ४३८ भाना
यी ९ अणतसो-अनन्तश भने पार उन्मा -दक्षुरिव शेरीनी भा३४ महा जतेसु-महायोपु पापीमान नीति रवाने भाटे तैयार ४२८ यत्रोमा सभेरव आरसतो-सुभैरसनारसन भूम भरारीत पाउता पाउता सम्मेहि-स्वकर्मभिः yalपात हुभाना निमित्तथी पीलिओम्मि-पीडिनोऽस्मि पीताये छु * ભાવાર્થ – હે માતાપિતા ! જે પ્રમાણે મોટા યત્રોમ શેરડીને પીલવામાં આવે છે તે પ્રકારે નરકમા હુ આવી જાતના યાત્રામાં એકવાર નહિ પણ અનેકવાર