Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उताध्ययनसूत्र
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छाया-ऋद्धि वित्त च मित्राणि च, पुरनार च गातीन ।
रेणुकमिव पटे लग्न, नित्य निर्गत• ॥८॥ टीका-'इडी' इत्यादि ।
स मृगापुनः कुमारः मदि-करितुरगादि सम्पट च-पुन वित्त-हिरण्य सुवर्णादि रूपम्, च-पुन मिनाणि, तथा पुत्रदार: पुरान दाराश्र, नातीनसोदरादींश्व पटे लान रेणुकमिव धलिमिव निर्धय यत्त्या निर्गत: यहाद् निष्का न्त =मानितः इति यावत् ॥८७।। __ततोऽसौ की सजात इत्याद-- मूलम्-पंचमहव्वयजुत्तो पचसमिओ तिगुर्तिगुत्तो ये ।
सभितर बाहिरए, तओ कम्मसि उर्जुओ ।।८८॥ छाया---पञ्चमहानतयुक्तः, पञ्चसमितस्त्रिगुमिगुप्तश्च । " साभ्यन्तरतो, तपः कर्मणि उद्युक्त' । ८८||
इस गाथा द्वारा सूत्रकार ने 'अन्तरग परिग्रह का त्याग मृगापुत्र ने किया। यह बात प्रदर्शित की है। अब वाद्य परिग्रह का भी त्याग उन्होंने कर दिया-यह बात वे इस गाथा द्वारा कहते हैं
- इड्डी वित्त च' इत्यादि। . अन्वयार्थ-वस्त्र मे लग्न धूली कि तरह मृगापुत्रने (इड्डी-ऋद्धिं) करी तुरग आदि सम्पत्ति का (वित्त-वित्त) हिरण्य सुवर्ण आदि वित्त का, (मित्तेय-मित्राणि च) मित्र जनोंका (पुत्तदारं च नायओ-पुत्रदार चं ज्ञाति १) पुत्र का, स्त्री का, तथा अपने ज्ञातिजनो का (पडे लग्ग रेणुय वपटे लग्न रेणुकमिव) वस्त्र में लगी हुई धूलकी तरह (निमित्ताग निग्गओ-निय निर्गत.) परित्याग कर दिया और घरसे निकल गया अर्थात् दीक्षा लेकर मुनि बन गया ॥८॥
આ ગાથા દ્વારા સૂત્રકારે “ તર ગ પરિગ્રહને ત્યાગ મૃગાપુત્રે કર્યો” એ વાત પ્રદર્શિત કરેલ છે હવે બાહ્ય પરિગ્રહને પણ તેણે ત્યાગ કરી દીધો એ વાતને मा गाथा द्वारा छ-"इडी वित्त च" छत्यादि।
_मन्वयार्थ - पखने योटेal धूगनी भा४ भृगापुत्रे दडी-ऋद्धिं हाथी । आ सपतिना विन-वित्त ९िय सुप मा पित्तना, मित्तेय-मित्राणि च भित्र नानी, पुत्तदार च नायओ-पुत्रदारच ज्ञातिन् पुत्रना, स्त्रीने, तथा पाताना शतिनाना पडेलग्ग रेणुयव-पटे लग्न रेणुकमिव दुभ भागेर धूमनी भा४ પરિત્યાગ કરી દીધું અને ઘેરથી નીકળી ગયા અર્થાત દીક્ષા લઈને મુનિ બની ગયા હતા