Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ १८ सजयमुनि प्रति कम्यचिन्मुने प्रश्न कुलेऽजनि । तत्र च कुतश्चित्तथाविपनिमित्तत. सनातपूर्वजन्मस्मृतिपिरतिमा पन्न प्राज्यामद्गीकृतवान् । ततोऽप्रतिबद्धविहारितया विहरन् भत्रियराजर्षि सजयमुनि लिगेग्य त पृच्छति-हे मुने । यथा ते-तव रूप प्रसन्न-विकारवर्जित दृश्यते, तथा तदनुरूपमेन ते-तब मनोऽपि प्रसन्न-निर्विकार दृश्यते ॥२०॥
इस प्रकार दीक्षा धारणकर मजयमुनि गीतार्थ बन गये । और दस प्रकार की मुनि सामाचारी का पालन करने में सावधान बनकर उन्हों ने गुरु की आज्ञा से एकाकी होकर विहार करना प्रारभ किया। विहार करते • ये एक नगर में आये। वहाँ क्या हुआ सो अब प्रकट किया जाता है-'चिचा' इत्यादि।
अन्वयार्थ--(ग्वत्तिय-क्षत्रिय ) किसी क्षत्रिय ने (रज चिचा-राज्य त्यत्वा) राज्य का परित्याग करके (पन्वडग-प्रत्रजितः) दीक्षा धारण की थी। यह क्षत्रिय राजमपि थे, तसा पूर्वजन्म में वैमानिक देव थे। वहा से चवकर क्षत्रिय कुल मे इन्हों ने जन्म धारण किया था। किसी निमित्त को पाकर इनको पूर्वजन्म की स्मृति आजाने के कारण सर्व विरति का उदय आ गया था, सो इन्हों ने शीघ्र ही राज्य का परित्याग कर दीक्षा धारण करली। अप्रतिवद्ध विहारी होने के कारण ये क्षत्रिय राजर्पि विहार करते हुए यहीं पर आ गये थे। सो उन्हों ने सजय मुनि को देखकर यह पृछा-हे मुने।-(जहा ते रूप दीसह-यथा ते रूप दृश्यते ) जैसा तुम्हारा रूप विकार वर्जित दिग्व रहा है (तहा
આ પ્રમાણે દીક્ષા ધારણ કરીને સ જય સુનિ ગીતાર્થ બની ગયા અને દસ પ્રકારની મુનસામચારીનું પાલન કરવામાં સાવધાન બનીને તેઓએ ગુરુની આજ્ઞાથી એકાકી બની વિહાર કરવાને પ્રારભ કર્યો વિહાર કરતા કરતા તેઓ એક નગરમાં साव्या त्या शुभन्यु तन के प्राट ४२वामा मावे छ--"चिच्चा" त्याला
सन्क्याय--खत्तिए-क्षत्रिय क्षत्रिय रज चिच्चा-राज्य त्यत्तवा रायने परित्यारीने पन्बदए-प्रजित ीक्षा पा२९५ ४ ता ते क्षत्रिय समता तथा પૂર્વજન્મમા વૈમાનિક દેવ હતા ત્યાથી વીને ક્ષત્રિયકુળમાં તેઓએ જન્મ ધારણ કરેલ હતો કે નિમિત્તને લઈને તેને પૂર્વ જન્મની સ્મૃતિ આવી જવાના કારણે સર્વવિરતિને ઉદય થઈ ગયે આથી તેઓએ તરતજ રાજ્યનો પરિત્યાગ કરીને દીક્ષા ધારણ કરી લીધી અપ્રતિબદ્ધ વિહારી હોવાના કારણે એ ક્ષત્રિય રાજર્ષિ વિહાર કરતા કરતા અહી આવી પહોચ્યા હતા તેમણે જય મુનિને જોઈને
यु, ९ भुनि। जहा ते रूव दीसइ-यथा ते रूप दृश्यते २ प्रतिभा३ ३५