Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनमने टीका--'मायागुइय' इत्यादि।
हे सजय मुने । क्रियागराधादिभिर्यत्पर पितम् , एतत्स तु मायातम् = मायाभापितम् । तथा क्रियागादिमभृतीना भापा-उक्ति. मृपा अगीका, निरर्थिकाशिवमुग्वरनिता चास्ति । तत एमाह सयन्नपिक्रियावाद्यादिमतश्रवणादिभ्यो निवर्तमान एम, अपिगढी निधयार्थक, सामितिष्ठामि स्त्रात्मनीति शेप । इद हि सजयमुने स्थिरिकरणार्थमुक्तम् । अय भार:-यथाऽह क्रियावाद्याधसत्प्ररूपणातो नित्तस्तथा त्वयाऽपि निर्तितव्यमिति ।
उक्तचापि-"ठियो य ठाए पर" छाया-स्थितश्च न्यायपयति परम् इति ।च-पुनरहम् ईरे-सयममार्गेचिरामि ।।२६।।
ये क्रियावादी आदि पापकारी कैसे है ? इम पातको क्षत्रिय राजऋपि प्रदर्शित करते है-'मायायुइय' इत्यादि ।। _ अन्वयार्थ-हे सजयमुने । क्रियावादी आदि जनो द्वारा जो कुछ भी प्ररूपित किया गया है (ग्य-तत्) यह सब (माया बुडयम्-मायोतम्) माया से ही कहा गया है तथा (मुसा भासा निरस्थिया-मृपा भापा निरर्थिका) इसकी भापा-वाणी-मृपा-सर्वथा अलीक है और निरर्थक-शिवसुग्व से जीवों को वर्जित करनेवाली है। इसीलिये (अह सजममाणोवि-अह सयच्छन्नपि) मै क्रियावाटी आदि के मतके श्रवण आदि से दूर होकर निश्चय से (वसामि-वसामि) अपनी आत्मा में वसता हु, यह बात सजयमुनि की स्थिरता के निमित्त ही क्षत्रिय राजमपिने कही है । तात्पर्य इसका यह है कि जिम प्रकार मै क्रियावादी आदिकी असत्यरूपणा से परे रहता है उसी तरह से आपको भी दूर रहना चाहिये। कहा भी है-"ठिओ य ठावए पर जो स्पय स्थित
એ ક્રિયાવાદી આદિ પાપકારી કેવા છે? આ વાતને ક્ષત્રિય રાજર્ષિ પ્રદર્શિત ४२ छ -"माया बाय" त्या!
અન્વયાર્થ-હૈ સજ્ય મુનિ ? કિયાવાન આદિજનો દ્વારા જે કોઈ પણ પ્રરૂપિત ४२वामा मावत छ एय-एतत् ते सघणु माया बुइयम्-मायोक्तम् भायाथी । ४ामा मावस छ तथा मुसाभासा निरत्थिया-मृपाभापा निरथिका अनी ભાષા, વાણી, મૃષા, સર્વથા અલીક છે અને નિરર્થક શિવસુખથી જીવને જીત ४२पावाणी छे मा ४२ ई अह सजममाणो वि-अह सयच्छन्नपि लियावाही महिना भतने सामाथी २२डीने निश्चयथा सामि-सामि पाताना यात्मामा વસુ છુ આ વાત સ જય મુનિની સ્થિરતાના માટે જ ક્ષત્રિય રાજર્ષિએ કહેલ છે તાત્પર્ય આનુ એ છે કે, જે પ્રકારે હુ ક્રિયાવાદી આદિની અસત્ પ્રરૂપણાથી દૂર २४ छु मे प्रमाणे तमारे ५५ २ २६७ नये ४ ५ छ-"ठीओ य