Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तगयो टोका-मुग्गीये' इत्यादि।
पाननोद्यानशीमिरी-पाननानि यादाश्रयाणि नानि, तथा उद्यानानिक्रीडाम्नानि, तेम्पशोभित. तम्मिन , अन पप रम्ये मनोरमे गुनी नाम्नि नगर चलभद्र इति नाम राजाऽऽसीन, तम्य मृगा नाग अनमहिपी-पहरामी आगीन् ॥१॥ मूलम्-तैसि पुत्ते वलेसिरी, मियापुत्तेति विस्मए ।
अम्मापिऊण दईए, जुवराया दमीसरे ॥२॥ छाया-नयो पुनो यही मृगापुत्र उति रिचत ।
अम्बापिनार्दयितो, युरानी दमीश्वरः ॥२॥ टीका--'तेसिं पुत्त' इत्यादि।
तयोःमृगाल भद्रयों पुत्रो दलसीमानामा श्रीः, लोके तु मृगापुन इति नाम्ना विश्रुत मस्द्धि', अयापित्रोदरित =प्रिय , युवराज यौपराज्यपदेभिपिक्त. दमीवर'-जन्मतो हि वनीकृतेन्द्रियत्वेन 'दमीवर ' इति रोके प्रसिद्धश्वासीत् ॥२॥
अन्वयार्थ (काणणुनाणसोहिये-काननोन्यानगोभिते) वन एवं उद्यान से सुशोभित (सुग्गीवे-सुग्रीवे) सुग्रीव नाम के (रम्मे नयरे-रम्य नगरे) मनोरम नगरमे (पलभदेत्तिराया-बलभद्र इतिराजा) बलभद्र इस नामके एक राजा थे। (तस्सग्गमाहिसी-तस्य अग्रमहिषी) उनकी पटरानी का नाम (मिया-मृगा) मृगा या ॥ १ ॥
'तेसिं' इत्यादि
अन्वयार्थ (तेसिं-तयो.) इन के (पुत्ते-पुत्र ) पुत्र (बलसिरी बलश्री) बलश्री नाम के थे। जो लोक में (मियापुत्तेत्ति विस्सुए-मृगापुन इति विश्रुत.) मृगापुत्र इसनाम से प्रसिद्ध थे। यह (अम्मापिऊण-अम्बापित्रो) माता पिताको (दइए-दयित) अत्यत प्रिय-लाडले थे। उन्होने इनका
अन्य-काणणजाणसोहिये-काननोद्यानशोभिते न मने Gधानथा सुशमित सुग्गीवे-मुग्रीवे सुग्रीव नामना रम्मे नयरे-रम्ये नगरे भनाभ्यनगरमा पलभद्देनिराया-बलभद्र इतिराना पसल नाम मे on तो तस्सग्गर्माहसी -तस्य अग्रमहिपी तेनी ५८ लानु नाम मिया--मृगा भृ॥ तु ॥ ५ ॥
तेर्मि" त्याला सन्याय-तेसि-नयो तेना पत्ते-पून पुन बलसिरि-बलश्री मलश्री नामना sal, २ मा मियापुत्तेत्ति विस्सुए-मुगा पुत्र इति विश्रुत भृगा धुनना नामयी anjlat s। ये भृगापुत्र अम्मा पिऊण-अम्बात्रिो माता पितान दयिए