Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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__टान्तमुनमा दाष्टान्तिरामा.--- मृलम्-एव धम्म अकाउण, जो गड पर भवं ।
गच्छंतो सो दुही होई, वाहिगेगेहिं पीडि" ॥१९॥ छाया- धर्मम हत्या, यो गति पर माम् । ___ गाउन ग दुवी भाति, च्याविरोग. पीडिनः ॥१९॥ टीका ' इत्यादि ।
एवम् अपायपुरुषपद यो जीयो धर्मम् भाया पर भर-पार गछति । गन्छन् स याचिरांगेच्याय'टादय रोगारादयन्ते पीडिता व्यरित सन दुःसी भाति ॥१९॥ मार्ग को पार करने के लिये परसे निरलतारेवर (गो -गच्चन) जातक अपने गन्तन्य स्थान पर नहीं पहुंच जाना तयता चलते . बीच में ही (छुहा तण्णादि पीडिओ-क्षुतणाभ्या पीडित.) भूख और प्यास सेन्यथित होर(दुही होड-दु पी मति)दु.पीहोमारहता है ॥१८॥
अर इसी को दान्तिक से घटाते है--'व धम्म' इत्यादि। _ अन्वयार्थ--(एव-एच) इसी प्रकार जो प्राणी (धम्म अकाऊणधर्म अकृत्वा) धर्मको नहीं करके (पर मव गाई-पर भव गति) परभव की और प्रयाण परताहे वह जरता मुक्ति अवस्था को प्राप्त नहीं कर लेता है तबतक (गच्छतो सो दुही-गन् स दुग्वी भवति) इस ससार से भ्रमण करते २ हरएक गति में दाग्चित ही होता रहना है। वह कही ( वाहिरोग पीडि-व्याधिरोग पीटित.) व्याधि से दुःखित होता है तो कही आधि (मानसिक चिता) से और कहा
थी 8२ नाणे छ ते गच्छतो-गच्छन् पाताना पाना स्थान G५२ न्यासुधा पडायत नया त्या सुधी यासता यासता वयमा छहा तण्हाहि पीडिओ-क्षुत, णा-या पौडित भूम मन तरसथी पारित थ दुही होइ-दुःखी भवति मा ૦૨વિત થાય છે ૧૮
वे ते दृष्टातिथी समन छ --"एव धम्म" छत्याह
अन्याय-एव-एव मा २२ प्राण धम्म अकाऊण-धर्म अकृत्वा धमने __ नही पायरता पर भव गच्छई-पर भव गच्छति न्यारे ५२म त. प्रयाएर ४२ छ
ते या सुपी भुति २०५२वान नथी पामतो त्या सुधी गच्छतो सो दुही होइगच्छन् स दु ग्वी भवति । स सारमा प्रभएर ४२ता .ता ६२४ गतिमा मत २६। ४२ छे ते या२७ वाहिरोगेहिं पीडिए-व्याधिरागै. पीडित व्यायी દુખિત થાય છે, તે કયારેક માનસિક ચિતા અદિથી, અને કયારેક રોગ આદિથી,