Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दृष्टान्तमुताष्टान्तियामा~मृतम्-एव धम्मं अकाउण. जो गड पर भंव।
गच्छतो सो दुही हो, योहिगेगेहिं पीडित ॥१०॥ छाया-पर धर्ममा , गो गनति पर भाम् ।
गाउन स दुगी भाति, उपाधिगंग पीडिन: ॥१९॥ टीका--17' इत्यादि ।
एवम् अपायेगपुरुपपद् यो जीरो धर्मम् भरपा पर भा-पालो गति । गन्छन् स व्याधिरामे-याधयः-धादय , रागारातयाते पीडितो व्यरितः सन् दुःसी भाति ॥१९॥ मार्ग को पार करने के लिये परसे निकलता है वह (गच्यतो-गरमन) जस्तक अपने गन्तन्य स्थान पर नहीं पहुंच जाता तबतक चलत.. बीच में ही (लुहा तण्णादि पीडिओ-क्षुत्तष्णाभ्या पीडिता) मग्न और प्याम सेम्यथित होरर (दीड-दुपी मनि)दुग्नीहोतारहता है ।।१८।।
अब इसी को दान्तिक से घटाते है--'च धम्म' इत्यादि। . अन्वयार्थ---(एच-य) इसी प्रकार जो प्राणी (धम्म अकाऊणधर्म अकृत्या) धर्मको नही करके (पर भव गाई-पर भव गति) परभव की और पयाण करताहै वह जनता मुक्ति अवस्था को प्राप्त नहीं कर लेता है तबतक (गच्यतो सो दही-गच्छन् स टु ग्वी भवति) इस ससार में भ्रमण करते २ हरएक गति में दायित ही होता रहता है। वह कही ( वाहिरोगे पीडिग-व्याधिरोग पीडित.) व्याधि से दुखित होता है तो कही आधि (मानसिक चिन्ता ) से और कही धे थी हार नाणे छ ते गच्छतो-गरउन पाताना पाना स्थान ५२यासुधा पडायत नयी त्या सुधी यासता यासता क्या हा तण्डाहि पीडिओ-क्षुत गाभ्या पीडित भूम भने तरसी पीडित थ दुही होद-दुखी भवति Euथा. વિત થાય છે ૧૮
हवे ते दृष्टातिथी समन छ ---"एव धम्म त्यादि।
२१याथ~एव-एव मा प्रारे प्राणी धम्म अकाऊण-धर्म अकृत्वा धमन नही मान्यता पर भव गच्छई-पर भव गच्छति न्यारे ५२१ त प्रयाण ४२ छ ते 40 सुपा मुखित २५१२वान गथी पामती त्या सुधी गच्छतो सो दुही होटगच्छन् स दुखी भवति मा ससारमा प्रमाण ४रता त हरे* गतिभा ( R&ा ४३ छ त यार वाहिरोगेहिं पीडिए-व्याधिरागै पीडित व्याधियी દુખિત થાય છે, તે ક્યારેક માનસિક ચિતા અદિથી, અને કયારેક રોગ આદિથ,
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