Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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टीरा--'मणिरयण' इत्यादि।
अन्यदा म गृगापुत्री मणिरत्नमालेमणिनियन्द्रकान्तारिभि रत्न'%D रानादिभिरा निर्मित हिमरा मितल या तत्तथा तम्मिा, चदान्ता दिमणि यतनादिरलनिस्दशामके, प्रामाापनेमागस्यन्ते दिगोऽस्मिन् स्थितरित्यागेनगराम. प्रामादम्यागेनि मासटागेपन, तम्मिन मामागास स्थिती नगरम्य चतापनिक चघराणि मार्गस्प स्थानानि आरोग्यतिम्पश्यति ॥४॥
ततो यदभूतदाह-- मूलम्--अहे तत्र्य अडच्छेत, पासई समणेसजय ।
तवनियमसंजमधर, सोलंड गुणागर ॥५॥ छाया--अथ तनातिकामन्त, पश्यति अमणसयतम् ।
तपो नियमसयमधर, नीलगाय गुणाकरम् ॥५॥ टीका--'अह' इत्यादि। अ-अनन्तर स मृगापुको युवराजतपोनियमसयमघर-तपोऽनशनादि 'मणिरयण' इत्यादि
अन्वयार्थ एक दिन की बात है कि मृगापुन (मणिरयण कुष्टि मतले-मणिरत्न कुटिमतले) चहान्त आदि मणियों एवं कर्केनन आदि रत्नों से निपढ भृमिवाले (पासायालोयणे-प्रासादालोकने) महल के गोग्नमे (ठिओ-स्थित.) बैटे हुआ नियरस्स चउपातिगचच्चरे-नगरस्य चतुष्क त्रिचत्वराणि) अपने नगर के चतुम-चोट्टो,-तिगहो-जहा लीन रास्ते मिलते हों एव चत्वरो-जहा अनेक रास्ते मिलते हो उनको (आलोगड-आलोकयति) देख रहे थे ॥ ४ ॥
उस समय क्या हुआ सो कहते मे-'अह' इत्यादि । अन्वयार्थ-(अह-अय) इसके याद उन्होंने (तवनियमसजमघर "मणिरयण" त्यादि।
सन्क्याथ - हिवसनीपत छ, भृगापुत्र मणिरयणकुहिमतले-मणि रत्नकुहिमतले यद्रत माहि भणीमाथी मन भने ४ तन मा रत्नाथी भढवामा मावस भूमिका पासायालोयणे-पासादालोक्ने मखनी मारी। ठियो-स्थित मेसीने पोताना नयरस्स चउक्वतिगचच्चरे नगरस्य चतुप्फत्रिक चत्व
નગરના જુદાજુદા ચેક તેમ જ બજારેને, ચાર રસ્તા, ત્રણ રસ્તા જયા મળતા ता सेवा २५जानु आलोएद-आलोकयति म न री २२ ते ॥ ४ ॥
से समये शुमन्यु ने उ छ-"अ" त्यादि ! मन्वयार्थ-अह-अथ मा सघY नया पछी तेज
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