Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्यपानसत्र
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शुगतनी नागिन्म, T=PT. पुरामा-गालियाग मारति ॥८॥
समुत्पननालिस्मरणो मृगापुत्री गगनदयो-- __ मूलम्--विसर्पसु अरजतो. रंजनो सजर्मम्मि ये ।
अम्मापियरं उवागम्म, डम बयणमब्बी ॥२॥ छाया-विषयेषु अरज्यन, रया सयौ न । __अम्मापितरानुपागम्य, १६ मनमनमीत् ॥९॥ टीका-निमसु' इत्यादि।
स गृगापुगो युवराजो पिपु मनोगादादिपु अरज्यन-आत्मपरिणति मकुन् , च=पुन• सयमे सप्तदश रज्यन् आत्मपरिणति सयोजयत् अम्बा पितरौ उपागम्य-मातापिनी' समीपे समागत्य इदस्य माण पचनमनमीत् । 'अम्मापियर' इत्या मारुतत्वादेवचनम् ॥९॥ (पोराणिय जाइ-पौराणिकी जाति) अपने पूर्वजन्म की स्मृति हो आई । अर्थात् जातिस्मरण ज्ञान से पूर्व जन्म को देगा तथा (पुराकच सामण्ण च-पुराकृतम् श्रामण्य च)पूर्वभव में पालित चारित्र की (सरडस्मरति) स्मृति हो आई ॥ ८ ॥
जातिस्मरण ज्ञान होने पर मृगा पुत्रने जो किया सो कहते है'विसगलु' इत्यादि।
अन्वयार्य-(विसण्सु-विपयेषु) चिपयों से (अरन्नतो-अरज्यन) विरक्त होकर एव (सजमम्मि य रजतो-सयमे च रज्यन्) सत्रह प्रकार के सजम मे आत्म परिणति को अनुरक्त कर मृगापुत्रने (अम्मापियर उवा गम्म-अम्बापितरौ उपागम्य) माता पिता के पास आकर (इम वयण मनची-डद वचन अब्रवीत्) इस प्रकार कहा।
भावार्थ--पूर्वभव की याद आने से मृगापुत्र को मनोज शब्दादिक नी स्मृति थ तय पुराकय सामण्ण च-पुराकृत श्रमण्य च पूर्व सभा पात पाणेसा यात्रिनी सरइ-स्मरति ते स्मृति थई आधी ॥ ८ ॥
तिभर ज्ञानयवाथी भृशाधुत्र यु तनेछ-" विसएसु" त्या
मन्वयार्थ- विसएसु-रिपयेषु विषयोथी अरजतो-अरज्यन् वि२४त मान तमा सनमम्मि य रज्जती-सयमे च रज्यन् सत्तर २ सयनमा मात्भ पार
तीन अनु२४त ४२री भृगपुत्रे अम्मापियर उवागम्म-अम्बापितरौ उपगम्य भाता [यतानी पासे मावीन उम वयामब्ववी-उद वचल अब्रवीत मा प्ररथा घु
ભાવાર્થ-પૂર્વભવની યાદ આવવાથી મૃગાપુત્રને મનોઝ શબ્દાદિક વિષયની