Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका 4 १८ मियावादिना पापफारित्ववर्णनम नरकासासा: पतन्ति । च-पुन. आर्य-उत्तमम् धर्म-जिनप्ररूपित सद्धर्म चरि स्वाभामेव्य, नु नरा , दिव्या देवोकसम्मान्पनी गति मगतिमाना सिद्धिस्पा गति वा गन्धनि । हे सजय मुने । असत्परूपगापरिहारेण सत्मरूपगा परायणनेव भवता भरितत्यमिति भाव ॥२५॥
एते क्रियागादिप्रभृतय. पापकारिण क्थम् ' इत्याहमूलम्-मायावुइयमेयं तु, मुसा भीसा निरट्रिया।
सजमनाणो विं अह, वसामि इरियामि ये ॥२६॥ छाया-पायोत्तमेतत्त मृपा भापा निरथिका ।
सयन्न्न पि वह, वसामि हरे च ॥२६॥ उन क्रियावादी आदिकों की तथा जिनप्रणीत सद्धर्मकी आराधना करनेवालो की क्या क्या गति होति है ? सो कहते है--'पडति' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(पावकारिणो-पापकारिणः) क्रियावादी आदि व्य. क्तियों द्वारा कृत असत्प्ररूपणाके सेवन करने में परायण (जे-ये) जो (नरा-नरा') मनुष्य है वे (पोरे नरग पडति-गोरे नरके पतन्ति) मरकर भयकर मीमन्तक आदि नरकावाम मे जाते है । (च आरिय धम्म चरित्ता-च आय धर्म चरित्वा) जिन प्ररूपित वर्मका सेवन करते है वे उसके सेवन से (दिन्य गद गच्छति-दिन्या गतिं गन्छन्ति) देवलोक को अथवा समस्त गतियों में प्रधानभूत गति सिद्धिगति को प्राप्त करते हैं। इस लिये हे सयतमुने । असत्प्ररूणा का परित्याग करके तुमको सत्प्ररूपणा करने मे ही परायण यने रहना चाहिये ॥२६॥
એ ક્રિયાવાદી આદિઓની તથા જીનપ્રણીત સદુધમની આરાધના કરવાવાળાની शुशुमति यायतेने --"पडति" त्या
सन्या-पावकारिणो-पापकारिण' ठियापही मा व्यतिमी द्वारा राती असत् प्र३५९यानु सेवन ४२पामा ५२सय जे-येरे नरा-नरा मनुष्य छ ते घोरे नरए पडति-घोरे नरके पतन्ति मरीन सय ४२ सीमत माह नवासमा जय छ तर यति च आरिय धम्म चरित्ता-आय धर्म चरित्वा न प्रचित धर्मनु भवन उरे छत सेना सेवनयी दिव्य गड गच्छति-दिव्या गतिं गच्छन्ति દેવકને અથવા સમસ્ત ગનિઓમાં પ્રધાનભૂત ગતિ સિદ્ધગતિને પ્રાપ્ત કરે છે આ કારણે હું સવત મુનિ 1 અસત્ પ્રરૂપણાને પયિાગ કરીને તમારે સત્ય પ્રરૂપણા ડગ્યામાજ પરાયણ બની રહેવું જોઈએ પરપા