Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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এলাকায় तथामूलम् नमी नमे. अप्पाणं, ससं सकेणं चोडओ ।
चाऊण गेह वही, सामण्णे पजवहिओ ॥१५॥ माया-नमि नमरति आत्मानं, साक्षात् गोण नोटित ।
वतमा गेह देहः, श्रामग्ये पर्युपस्थित' ||१५|| टीका-'नी' इत्यादि।
नमि =नमि नामा पैटेहो विदेह देशोत्पन्नो राजा गेह-गृह त्यतया श्रामण्ये-साधुधर्मे पर्युरस्थित , चारित्रानुष्ठान मत्युद्यतोऽभूदित्यर्थः । स नमि मुनिः सालात् ब्रामणरूपपरेण शरेण नोदित =पेरित. शानचर्चाया परीक्षितः सन् आत्मान नमयतिन्यायमार्गे स्थापयति स्म । ततः कमेरदिवो जात इत्यर्थ ॥४५॥
तथा-'नमी नमेड ' इत्यादि। अन्वयार्थ (नमी-नमि.) नमि नामके राजाने (वैदेही-वैदेहः) जो विदेह देशमे उत्पन्न हुए थे (गेह-गृहम्) गृहका (चइ उण-त्यत्तवा) त्याग कर (सामण्णे पज्जुबहिओ-श्रामण्ये पर्युपस्थित.) चारित्र धर्म के अनुष्ठान करने मे अपने आपको उद्यत कियाथा। यद्यपि उनकी (सक्ख सकेण चोहओसाक्षात् शक्रेण नोदित.) साक्षात् ब्राह्मण रूपधारी इन्द्रने ज्ञानचर्या में परीक्षानी थी तो भी उन्होंने (अप्पण नमेड-आत्मान नमयति) न्याय मार्ग में ही अपनी आत्माको झुकायाथा-स्थापित किया था, इसीलिये वह कर्मरज से रहित बन गये। इनकी कथा पीछे नौवे अध्यन म आ चुकी है अतः वहासे देख लेवें ॥ ४५ ॥ तथा- " नमी-नमेइ" त्याle
भन्याय-नमि-नमि नभी नामना २ २ वैदेही-वैदेह व हेशमा उत्पन्न थये ता गेह-गृहम् ते गृखना चइउण-त्यक्त्वा त्याप शन समणे पज्जुबहिनो-श्रामण्येपर्यु स्थित यास्त्रि यमन गनुहान ४५पामा मे४३५ मन्या ताले , मेमनी सक्ख सकेण चोइओ-साक्षाव शक्रेण नोदितः साक्षात ब्राझ१३५धारी ने ज्ञानयामा परीक्षा शती तो पए तभो अप्याण नमेइआत्मान नमयति न्यायमागमा पाताना मात्भाने शुभात ता-स्थापित ३० હતે -આથી તે કમરજથી રહિત બની ગયા તેની કથા પાછલા નવમા અધ્યયનમાં વર્ગવાઈ ચુકેલ છે આથી ચાથી જોઈ લેવી છે ૪૫ છે