Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनमूत्र
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तथा-- मूलम्--कि णामे ? किं गोते ? कस्सहाए व माहणे ।
यह पडियरसी बुद्ध १, कह विणीयेति वुच्चसि ॥२१॥ छाया-किं नामा ? किं गोरः १ कम्मै अर्थाय या मान. ।
कय प्रतिचरसि बुद्धान ? कर पिनीत इत्युन्यसे । २१॥ टीका-'मि नाम' इत्यादि।
हे मुने ! र किनामा असि-तव नाम रिमस्ति' तथा कि गोनोऽसि= तर गोत्र फिमम्ति, कस्म वा अर्थाय=फि प्रयोजनमुन्ठिय व माहन -मा हन्ति कमपि प्राणिन मनोवायायैर्य स माहना भाजित | तथा युद्धान् आचार्यान् कथ-केन प्रकारेण प्रतिवरसिम्सेवसे, कब च त्व विनीत =पिनय वान् इत्युन्यसे ॥२१॥ तया) उसी प्रकार से (ते मणो पसन्न दीमड-ते मनःप्रसन्न दृश्यते) तुम्हारा मन भी विकार वर्जित प्रसन्न मालूम पडता है ॥२०॥
तया-'किं णामे' इत्यादि
अन्वयार्थ-हे मुने (कि णामे-कि नामा) आप का क्या नाम है तया (किं गोते-कि गोत्र) गोत्र आपका क्या ह । (कस्सहाए व माहणेकस्मै वा अर्याय त्व माहन) किस प्रयोजन को लेकर आप मन वचन एव काय से प्राणातिपात आदि से चिरक्त हुए हैं अर्थात् दीक्षित हुए हैं। तथा (बुद्धे कई पडियरसी-जुद्वान् कथ प्रतिचरसि) आचार्यों की किस प्रकार से आप सेवा करते हैं और आप (कई विणीत्ति वुच्च सि-कथ विनीत इत्युच्यसे) विनयवान है यह बात कैसे घटित हुए है अर्थात् आप विनयशील कैसे बने ॥२१॥ विजार त माय छ, तहा-तथा तवा प्ररे ते मणो पसन दीसइ-ते मन प्रसन्न दृश्यते तमा३ मन ५१ २ प्रसन्न भालुम ५3 छ ॥२०॥
तथा-- िणामे" त्यादि !
उ मुनि । किंणामे-किनामा मापनु नाम छ, तथा कि गोत्ते-किंगोत्र सानु ध्यु गोत्र छ, कस्साए व माहणे-कस्मै वा अर्थाय त्व माहन' उया प्रयोजन લઈ આપ મન, વચન, અને કાયાથી પ્રાણાતિપાત આદિથી વિરકત બન્યા છે मर्थात हानि या छ १ तक बढे कह परियटसि-बुद्धान् कथ प्रतिचरसि माया ની આપ કઈ રીતે સેવા કરે છે, અને આપ વિનયવાન છે એ વાત કઈ મીતે મનાયેલ છે અર્થાત આપ વિનયશીલ કઈ રીતે બન્યા? રા