Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययनसूत्रे टीका--'दयदवस्स' इत्यादि ।
यो त तशीघ्र शीघ्र चरति-भिक्षाढी पर्यरति, च-पुनः अभी- पुन पुन• प्रमत्त माधुक्रिया प्रमादकारक , तथा उदयन साधुमर्यादालह धनकारक', ता-चण्ड-क्रोधा मातचित्तश्च भरति, स पापश्रमण इत्युच्यते ॥८॥
तथा--- मूलम्-पडिलेहे. पमत्ते, अवउज्झइ पायकवल ।
पडिलेहणा अणांउले, पारसमणे ति वुचंद ॥९॥ जाया---प्रतिलेग्मयति ममत्त• अपोजति पानकम्मलम् ।
प्रतिले बनायामनायुक्त , पापश्रमण इत्युच्यते ॥९॥ टीका-'पटिलेहेड' इत्यादि । यो बसपार सदोरम्मुमानिकादिक प्रमत्त सन् प्रतिलेखयतिकिंचिद् तथा 'दवदन्वस्स' इत्यादि--
अन्वयार्थ~जो साधु (दवदवस्म चरह-दुत हुन चाति) भिक्षा आदिके समयमे जल्दी २ चलता है तथा (अभिग्यण-अभीष्णम्) बार २ (पमत्ते-प्रमत्तः) साधुक्रियाओके करनेमे प्रमादी वनता रहता है। तथा (उलघणे-उल्लघन.) साधुमर्यादामा उल्लघन करता है (चडे-चण्ड.) क्रोध न करने के लिये समझाने बुझाने पर भी जो क्रोध करता है (पापसमणेत्ति बुच्चइ-पापश्रमण इत्युच्यते)उसको पापश्रमण कहा गया है॥८॥
तथा-'पडिलेहेड' इत्यादि
अन्वयार्य-जो साधु (पमत्ते-प्रमत्तः) प्रमादी बनकर (पडिलेहेइप्रतिलेग्वपति) यन्त्र, पात्र, सदोरक-मुग्ववस्त्रिका आदि की प्रतिलेखना
तथा-"दव दव्यम्स" त्या!ि
स-क्या:-- साधुदव दवस्स चरद-दत द्रत चरति भिक्षा माहिना समये oreal warl या छे तथा अभिोक्खण-अभीक्ष्य पार पा२ पमत्ते-प्रमत्त साधु (यायाने ४२वाभा प्रमाही मना रहेछ तथा उल्लघणे-उल्लघन साधु माहानु GR घन ४२ छे, चडे-चण्ड समजत सभाना सामे शोध ४२छे पावसमणे त्ति वुचइ-पापश्रमण इत्युच्यते सापा साधुने शास्त्रीय भाषामा पाश्रम ।। મા આવેલ છે કે ૮.
तथा-"पडिलेहेइ" या ।
अन्वयार्थ- साधु पमत्ते-प्रमत्त प्रमाही मनाने पडिलेहेइ-पतिलेखयति વસ્ત્ર, પાત્ર, સદરકમુખવસ્ત્રિકા વગેરેની પ્રતિલેખના કરે છે–કેટલાક ઉપકરણોનુ