________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रकृताङ्गसूत्रे छाया--अप्ये के ज्ञातयो दृष्ट्वा रुदन्ति परिवार्य च ।
पोषय नस्तात पोषितोऽसि कस्य तात जहासि नः ॥२॥ अन्वयार्थ:-(अप्पेगे) अप्येके (नायओ) ज्ञातयो-मातापित्रादिस्वजनाः (दिस्सा) दृष्ट्वा साधु (परिवारिया) परिवार्य वेष्टयित्वा (रोयंति) रुदंति (ताय) हे तात (णे पोस) नः अस्मान पोषय-पालय (पुट्ठोसि) पोषितोसि अस्मामिस्त्वं पालितोसि (ताय) हे तात (कस्स) कस्य हेतो (गो) नः अस्मान (जहासि) जहासि-त्यजसीति ॥२॥ अब उन्हीं अनुकूल उपसर्गों को कहते हैं-'अप्पेगे नायओ' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'अप्पेगे-अप्येको' कोई 'नायो-ज्ञातयः' ज्ञातिषाले अर्थात् मातापित्रादि स्वजन एवं संघधिजन 'दिस्सा-दृष्ट्वा' साधु को देखकर 'परिवारिया-परिवार्य' उसे घेरकर 'रोयंति-रुदंति' रोते हैं 'ताय-तात' वे कहते हैं कि हे तात ! 'णे पोस-नः पोषय' तुम हमारा पालन करो 'पुट्ठोसि-पोषितोसि' हमने तुम्हारा पालन किया है 'तायतात' हे तात ! 'कस्स-कस्य' किसलिये तू 'णो-न' हम लोगों को 'जहासि-त्यजसि' छोड देते हो ॥२॥ ____ अन्वयार्थ-कोई कोई ज्ञाति जन साधु को देखकर और उसे घेरकर रोदन करने लगते हैं-हे तात ! हमारा पालन पोषन करो। हमने तुम्हारा लालन पालन किया है। हे तात! किस कारण से हमें त्यागते हो?॥२॥
હવે સૂત્રકાર એજ અનુકૂળ ઉપસર્ગોનું વર્ણન કરે છે. – 'अप्पेगे नायओ' त्याह
wal-अप्पेगे-अध्येके' 'नायओ--ज्ञातयः' शातिवाणा अर्थात् मातापिता १५ समधी - 'दिस्सा-दृष्ट्रा' साधुन निधन परिवारियापरिवार्य त धेरीत 'रोयति-रुदति' २४ छ 'ताय-तात' तमा छ । तात! 'णे पोस-नः पोषय' तमे भा३ पासन ४२। 'पुद्रोनि-पोषितोसि' समे
३ पास यु छ 'ताय-तात' है तात 'कस्म-कस्य' । माटणो -नः' अमन 'जहासि-त्य बसि छोडी है. ॥२॥
સૂત્રાર્થ –કઈ કઈ જ્ઞાતિજને સાધુને જોઈને તેને ફરતાં વીટળાઈ વળીને કરુણાજનક શબ્દ બોલવા લાગે છે-“હે પુત્ર! અમે તારું પાલનપિષણ કર્યું છે, હવે તું અમારું પાલન-પોષણ કર. તું શા કારણે અમારે ત્યાગ કરીને ચાલી નીકળ્યો છે? પારા
For Private And Personal Use Only