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# प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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१-९२ से हो स्वर सहित
१-११ से अन्य हलन्त
लोप १ ९२ से 'वि' में स्थित हस्व स्वर 'व' को दीर्घ स्वर ई' को प्राप्ति तथा 'सि' व्यञ्जन का लोप अथवा अभाव १-२६० से श' के स्थान पर 'स' की प्राप्ति व्यञ्जन रूप विसर्ग का लोप और ३-३१ से स्त्रीलिंग अर्थक प्रत्यय 'भा' को प्राप्त रूप 'बोस' में प्राप्ति होकर वीसा रूप सिद्ध हो जाता है ।
शिव संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप तीसा होता है। इस सूत्र संख्या १-२८ से अम्बार का लोपः २ ७९ से 'जि' में स्थित हलन्त व्यञ्जन ' का लोप: १-९२ मे स्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' को प्राप्तिः १-२६० सेश के स्थान पर 'स' की प्राप्ति; १-११ से अन्त्य हलन्त च 'ह' काल और ३-३से स्त्री-अर्थप्रत्य 'अ' को प्राप्त रूप 'तोस' में' प्राप्ति होकर तीसारून सिद्ध हो ता है।
संस्कृतम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप सक्क होता है। इसमें सूत्र -१-२८ से अनुस्वार का लोप २७७ से द्वितीय 'स्' का लोप १-१२६ से 'ऋ' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति २-८९ से पूर्वोश्त लोप हुए 'स् के पश्चात् शेव रहे हुए 'क' को द्वित्व 'क' की प्राप्तिः १ १७७ से 'त्' हा लोर १-१८० से लोग हुए 'स्' के पश्चात् शेष रहे हुए 'अ' को 'य' को प्राप्तिः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक ववन में अकारान्त नपुंसक लिंग में '' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रश्यम'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर सक्करं रूप सिद्ध हो जाता है ।
संस्कार' संस्कृत रूप हैं। इसका प्राकृत रूप सवकारी होता है। इसमें सूत्र संख्या १-२८ से अनुस्वार का लोप २०७७ से द्वितीय हलन्त व्यञ्जन 'सु' का लोप २-८९ से लोप हुए 'स' के पश्चात शेष रहे हुए 'क' को द्विस्व 'क' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर सक्कारी रूप सिद्ध हो जाता है । १-२८ ॥
मांसादेवा ॥ १-- २६ ॥
मांसादीनामनुस्वारस्य लुग्वा भवति । मासं मंसं । मासलं मंसलं । कासं कसं । पापंसू कह कहं । एव एवं नूण नूणं । इआणि इआणि दाणि दाणि । कि कांमि कि करेमि । समुहं संमुहं । सुत्रं किं । सीहो सिंघो || मांस | मांसल 1 कांस्य | पांसु । कथम् एयम् । नूनम् । इदानीम् । किम् । संमुख । किंशुक | सिंह | इत्यादि ||
अर्थ-मांस आदि अनेक संस्कृत शब्दों का प्राकृत रूपान्तर करने पर उनमें स्थित अनुस्वार का विकल्प
लोप हो जाया करता है । जैसे- मांसम् मासं अथवा मंसं मांतलम् = मासलं अथवा मंसलं कश्यम् = फासं अथवा कंसं पांसुः पासू अथवा पंसू कयम कह अथवा कह एवम् एव अथवा एवं नूनम, नूम अश्वा नः इदानीम् आणि अथवा इआणि इनानीम् (शौरसेनी मॅ-) बाणि अथवा दाणि किम् करोमि कि
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