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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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वन्दित्वा संस्कृत कृान्त रूप है । इसका प्राकृत रूप वन्दित्ता होता है । इसमें मूत्र संख्या २-58 से 'व' का लोप और -८ से शेष 'त' को द्वित्व त्त' की प्राप्ति होकर वन्दिना रूप मिद्ध हो जाता है।
कृत्वा संस्कृत कृदन्त रूप है । इसका आर्ष प्राकृत में कट्ट रूप होता है । आप रूपों में साधनिका का प्रायः अभाव होता है ।।२-१५६।।
इदमर्थस्य केरः ॥२-१४७॥ इदमर्थस्य प्रत्ययस्य केर इत्यादेशो भवति ॥ युष्मदीयः तुम्हारी ।। अस्मदीयः । अम्हकेरो । न च भवति । मई-पकावे ! पाणिणीश्रा ॥
अर्थः- 'इससे सम्बन्धित' के अर्थ में अर्थात 'इदम् अर्थ' के तद्धित प्रत्यय के रूप में प्राकृत में 'कर' आदेश होता है । जैसेः-युष्मदीयः = नुम्हकरो और अस्मदायः = अम्हकेरो । किसी किसी स्थान पर 'केर' प्रत्यय की प्राप्ति नहीं भी होती है । जैसे:-मदीय-पक्षे = मईअ-परखे और पाणिनीया-पाणिणीमा ऐसे रूप भी होते हैं।
तुम्हरो रूप को सिद्धि सूत्र संख्या १-२४ में की गई है।
अस्मदीयः संस्कृत मर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप अम्हकेरो होता है । इसमें सूत्र संख्या ३-१०६ से 'अस्मत' के स्थान पर 'अम्ह' आदेश; २.१५७ मे इदम्'-अर्थ वाले संस्कृत प्रत्यय 'इय' के स्थान पर 'कर' आदेश और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुहिंजग में 'सिं प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर अम्हकेरी रूप मिद्ध हो जाता है।
मडीय-पक्षे संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप मईय-खे होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'द् गौर 'य' दोनों का लोप; २-३ से 'क्ष' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; २-८६ से प्राप्त 'ख' की द्वित्व 'स्वन' की प्राप्ति-६० से प्राप्त पूर्व 'ख' को 'क' की प्राप्ति और ३-११ से सतमो विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'ङि के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मई-पक्खे रूप सिद्ध हो जाता है ।
पाणिनीयाः संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्राकृत रूप पाणियात्रा होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्रि; १-१७७ से य का लोप; ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहु वचन में अकारान्त पुल्लिंग में प्राप्त 'जस' का लोप और ३-१२ से प्राप्त एवं लुन 'जम्' प्रत्यय के पूर्व में अन्त्य हस्व स्वर 'अ' को दार्थ स्वर 'पा' की प्राप्ति होकर पाणिणीआ रूप सिद्ध हो जाना है । ।।२-२५७।।
पर-राजभ्यां क-डिको च ।। २-१४८ ॥ पर राजन् इत्येताभ्यां परस्येदमर्थस्य प्रत्ययस्य यथासंख्य संयुक्तो को-डित् इक्क श्चादेशों