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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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अर्थ:-'मम्मी' प्राकृत-साहित्य का आश्चर्य वाचक अध्यय है । जहाँ श्राश्चर्य व्यक्त करना हो; वहाँ 'अम्मो' अन्यय का प्रयोग किया जाता है। जैसे:-(आश्चर्यमेतत=) अम्मो कथम् पायते-सम्मो कह पारिक्जद अर्थात् श्राश्चर्य है कि यह कैसे पार उतारा जा सकता है ? तात्पर्य यह है कि इसका पार पा जाना अथवा पार उतर जाना निश्चय ही आश्वयंजनक है।
'अम्मो' प्राकृत साहित्य का स्टारूपक और रूढ-अर्थक अन्यय है; साधनिका की आवश्यकता नहीं है।
'कह अव्यय की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२९ में की गई है।
पार्यत संस्कृत कर्मणि-प्रधान क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप पारिजह होता है । इसमें सूत्र-संख्या ३-१६० से मूल धातु पार ' में संस्कृत कर्मणि वाचक प्रत्यय 'य' के स्थान पर प्राकृत में 'इज्ज' प्रत्यय की प्राप्रि१-५ से 'पार' धातु के हलन्त 'र' में 'इज्ज' प्रत्यय के 'इ' की संधि और ३-१३६ से वर्तमान काल के एक वचन में प्रथम पुरुष में संस्कृत-प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पारिका रूप सिद्ध हो जाता है ॥२-२०८ ।।
स्वयमोथै अप्पणो नवा ॥२--२०६।। स्वयमित्यस्यार्थ अप्पणो वा प्रयोक्तव्यम् || विसयं विश्वसन्ति अप्पणो कमल-सरा । पचे । सयं चेन मुणसि करणिज्जं ।।।
__ अर्थ:--'स्वयम्' इस प्रकार के अर्थ में वैकल्पिक रूप से प्राक़त में 'अप्पणो' अव्यय का प्रयोग किया जाता है । 'स्वयम्-अपने प्राप' ऐसा अर्थ जहां व्यक्त करना हो; वहाँ पर वैकल्पिक रूप से "अप्परणो' अध्ययात्मक शब्द लिखा जाता है। जैसे:-विशद विकमन्ति स्वयं कमल-सरांमि-विसर्य विसन्ति अपणो कमल-सरा अर्थात् कमल युक्त तालाव स्वयं (हो) उज्बल रूप से विकासमान होते हैं । यहाँ पर 'अप्पणो' अव्यय स्वयं का योतक है । वैकल्पिक पक्ष होने से जहाँ 'अप्पणो' अध्यय प्रयुक्त नहीं होगा; वहाँ पर 'स्वयं' के स्थान पर प्राकृत में 'सर्य' रूप प्रयुक्त किया जायगा जैसे:-स्वयं चेव जानासि करणीयं = सयं चेत्र मुणसि करणिज अर्थात् तुम खुद ही-(वयमेव)-कर्त्तव्य को जानते हो इस उदाहरण में स्वयं के स्थान पर 'अपणो' अव्यय प्रयुक्त नहीं किया जाकर 'सर्थ' रूप प्रयुक्त किया गया है । इस प्रकार वैकल्पिक स्थिति समझ लेना चाहिये ।
विशदम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप विसर्य होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स' को प्राप्ति; १-७७ से 'द्' का लोप, २-१८० से लोप हुए 'द्' के पश्चात शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विमक्ति के एक वचन में प्रकारान्त नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर विसर्य रूप सिद्ध हो जाता है।