Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 556
________________ अल्लं न. (दिनम्) (देवज) दिन, दिवस; १-१७४ । असोय . (अशोक) अशोक वृक्ष; २.११४ । अयऊढो पि. (अवगूठ:) ढका हुका; बालिंगित; १-१।। अस्सं म. (आस्पम् ) मुख, मुंह, १-८४ । अवक्खन्दो पु. (अपस्कन्दः) शिविर, छावनी, सेना का अहक्खाय न, (यथास्यातम्) निर्दोष 'पारिक परिपूर्ण पड़ाय, रिपु-सेना द्वार। नगर का घेरा जाना; २-४ यमः १-२४५ । अवगूढो वि. (उपगूढः) आलिगित, २.१६८। अहं सर्व. (अहम्); मैं; १-४०%; अवजसो पु. (अपयशः) अपकीति; १-२४५। । अयं सर्व, (अहं) मै; २-१९९, २०४।। अवज्जं म. (अयचम्) पाप; वि. निन्दनीय; २-१४।। अहरु पुन. (अपरोष्ठम्) नीचे का होठा १-८४ । अबडो पु. (अबटः) कूप, सुआ; १-२७१ । अहव अ. (अश्वा) अषवा, ६१७ । अवहाल. (अपद्वारम्) छोटी खिड़की; गुप्त द्वार, अहवा (अ.) (अथवा) अथवा: १-६७, १-२५४ अहह म. (अहह) आमन्त्रण, वेद, बारचर्य, दुःन, अवयवो पु. (अवयवः) गात्र, अंश, विभाग, अनुमान आधिक्य, प्रकर्ष बादि अषों में प्रयुक्त होता है। श्योग का वाक्यांश; १-२४५ । २-२१७॥ अवयासइ सक.( श्लिष्यति) बह आलिंगन करता है | अहाजायं वि. (यथाजातम्) नग्न, प्रावरण रहित; २-१७४। अषयासो पु. ( ) मोमाजीमाYa, अनार (महअह) आमन्त्रण, छेप आदि में प्रयक्त आलिंगन, १-६, १७२ । होता है। २.२१७॥ अवरही पु. (अपराकः) दिन का अन्तिम पहर; २-४५ अहिशाह अक. (अभियाति) सामने आता है: १-४ | अवारि अ.(उपरि) ऊपर, २-१६६ । अहिएरा पु. (अभिशः) बच्छी तरह से जानने अवर अ. (उपरि) ऊपर १२६, १०८। बाला; १-५६, २८३ । अवरिल्लो वि. (उपरितनः) उत्तरीय वस्त्र, 'पद्दर, २-१६६ अहिमज्जू, अहिमञ्जू पु. (अभिमन्युः) अर्जुन का पुत्र अवसहो पु. (अपशब:) खराब वचन; १-१७२। अभिमन्यु २-२५ । अवार्ड वि. अपहृतम्) छीना आ १-२०६।। | अहिमन्नू पु. (अभिमन्यः) अजुन का पुत्र अभिमन्यू; अवहं सर्व. (उमयस्) दोनों युगल'; २-१३८ । १.२४३, २-२५ । अवहोबासं अ. (उभय बलं; आर्षे उभयो कालं ) दोनों अहिरीओ वि. (महीकः) निलंज्ञ, बेशरम; १.१०४ । समय; २-१३८ । अहिवन्नू पु. (अभिमन्युः) अर्जुन का पुत्र अभिमन्युः अवि अ. (अपि) भी; १.४१ १-२४३ । अविणय न. (अविनय) अविनय, १-२०३ । अहो अ. (अहो) अरे; विस्मय, आश्चर्य, खेद, शोक. अव्वो अ. (सूचनादि-अ) "सूचना, दुःख, संभाषण, | आमन्त्रण, संबोधन, वितके, प्रशंसा, असूया, वेष आदि अथों में प्रयुक्त किया जाने वाला अपराध, विस्मय, आनन्द, आदर, मय, खेव । विषाद और पश्चाताप" अयं में; २-१०४ । अध्यय; १-७२-२१७ । अस् अस्थि (अस्ति) यह है; २-४५ । श्रा नत्यि नास्ति) वह नहीं है। २-२०६ । श्राइरिश्रो पु. (आचार्यः) गण का नायक; आचार्य; १-७॥ सिधा (स्यात्) हो२-१०७। । आउजं पु. न. (आतोद्यम्) वाद्य, बाजा; १-१५६ । सन्तो (सन्तः) अस्ति स्वरूप वाले; १-३७ । अाउण्टणं न. (आकुञ्चनम्। संकोच करना; ६-१७७ । असहेज्ज वि. (असहाय) सहायता रहित; १-७९ ।। भाऊ स्त्री. (दे०) (आपः) पानी, जल; २-१७४ । असुगो पु. (असुक:) प्राण; (न.) चित्त, ताप; पाश्री वि. (आगतः) आया हुआ; १-२३८ । १-१७७ ॥ आकिई स्त्री. (आकृतिः) स्वरूप. आकार; १-२०१ असुरी वि. (असुरी) दस्य-दानव-संबंधी; १-७९ । । आगो वि. (मागस:) आया हा; १-२०९; २६८ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610