Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 609
________________ पृष्ठ-संख्या पंक्ति-संख्या অহঙ্কায় मषित भरिमा संयुक्तस्व शुद्धाय भवति पारिवा संयुक्तस्म ३२८ २-४३ सम्पर्क सप्प ३५० ३५२ कार्षापर्व रूपिणे था" fca" सजो २६९ Bultorkinekilnihe सम्जो पूर्वस्व सुख हदे संस्कृत ३८७ ३९३ स्थित मण्डको निश्चत व्यवषित संयुक्तस्यात् स्थित स्थिति मगको निश्चित व्यवस्थित संयुक्तस्य या स्पिति ४०५ ४१२ ४२० ४२१ ४२३ ४२७ ४३१ - १-१२१ २-१२५ चिचा पारको पाइको वैसे, हे? साउमाण सोग्बाण संबंध भूत पन्त ४५७ पृष्टांक के क्रम में मूल है, विश्व नहीं झूटा है। पुष्ट कमांक मूल बंत तक है। इस्पेता हितो इत्येतो दिती प्राति प्राप्ति घोष-अल्प-ग्राष घोष-बल्प-प्राप - - ४६७ ४७२ ४८३ l.

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