Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown
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एच्छू पु. (इषः) ईख, गन्ना; १-९५, २.१७। । उटभंतयं वि. (उद्धान्तकम्) भ्रान्ति पैदा करने वाला; पहुयी वि. (उत्सुकः) उत्कण्डिस२-२२।।
भौचक्का बनाने वाला; २.१६४। उच्छ, वि. (उत्क्षिप्तम्) फेंका हुआ; ऊंचा उड़ाया उभं न. (ऊर्वम्) ऊपर; ऊंचा; २-५९। मा २.१२७ ।।
उभयवलं न. (उभय बलम्) दोनों प्रकार का बल; ज्जलो वि. (उज्ज्वल निर्मल, स्वच्छ, दीप्त, चम
२-१३८/ कीला; २-१७४ ।
उभयोकालं न. (उमय कालम्) दोनों काल; २-१३८ । उज्ज्ल्ल वि. (वेशज) पसीना वाला; मलिन ; बलवान उंबरो (उदुम्बरः) गूलर का पेस १.२७० । २-१७४।
डम्मचिए स्त्री. (उन्मत्तिके) हे मदोन्मत्त ! (स्त्री.)२-१६१ उज्जू बि. (ऋजः) सरल, निष्कपट, सीथा; १-१३१ उम्हा स्त्री. (ऊष्मा) माप; गरमी; २-७४ | १४१, २-९८ ।
___ उरो पु. न. (जरः) वृक्षः स्थल; छाती; १-३२ । उज्जोगरा वि. ( उद्योतकराः ) प्रकाश करने वाले। उलूहलं न. (उदूखलम्) खलखला गूगल १-१७१। १.१७७।
उल्लं वि. (आवम्) गोला ओंजा हुआ। १-८२॥ उदो पु. (उष्ट्रः) कंट; २-३४।
उल्लविरीह वि. (उल्लपनशीलया) बकवादी स्त्री द्वारा उडू पु.न. (उ) नक्षत्र, सारा; १.२०२।।
२-१९३। पण ब. (पुनः) भेद, निश्चय, प्रस्ताव, द्वितीय वार, | उल्लानिए वि. (उल्लापयन्त्या) कयादी स्त्री द्वारा; पक्षान्तर यादि अर्थ में २-६५; १७७ ।
२-१९३। उणा अ. (पुनः) भेद, निश्चय, प्रस्ताव, द्वितीयवार, | उल्लिहणे वि. (उल्लेखने) घर्षण किये हुए पर; १-७ । १-६५, २-२१७।
उल्लेइ सक. (आर्दीकरोति) वह गीला करता है; १-८२ उणाइ अ. (पुनः ) भेद, निश्चय, प्रस्ताव, द्वितीयवार, उवज्झायो पु. (उपाध्यायः) उपाध्याय; पाठक अध्यापक
१-१७३ २-२६ । उरहोस पु. न. (उष्णीषम् ) पगड़ो, मुकुट, २-७५ ।। उवणिशं वि. (उपनीतम् ) पास में लाया हुवा; १-१०१ उत्तरिजं, उत्तरीअं न. (उसरीयम्) चद्दर. दुपट्टा १-२४८ लवणीयो पु. वि. (उपनीतः) समीप में लाया हुआ; उस्तिमो वि. (उत्तमः) श्रेष्ठ; १-४६ ५
अर्पित: १.१०१।
उवमा स्त्री. (उपमा) साहश्यात्मक दृष्टान्त; १.२३१ उत्थारो पु० ( उत्साहः ) उत्साही हड़ उद्यम; स्थिर प्रयत्न २-४८।
उवमासु स्त्री. (उपमासु) उपायों में ; १-७ । उदू त्रि. (ऋतुः) ऋतु, दो मास का काल विशेष; | उवयारेसु पु. (उपचारेषु) उपचारों में सेवा-पूजाओं में; १-२०१।
भक्ति में; १-१४५ । उद्दामो वि.( उद्दामः) स्वछन्द; अव्यवस्थित प्रचण्ड; उपरि अ. (उपरिम् ) कपर, ऊध्वं; १-१०८ । प्रखर १-२७७।
उपरिल्लं कि. ( उपरितनम् ) कपर का; ऊर्ध्व-स्थित; उद्धं न. (ऊर्ध्वम्) ऊपर, ऊंचा; २-४९ । उप्पलं न. (उत्पलम्) कमल पध; २-७७ । उबवासो पु. (उपवास:) दिन रात का अनाहारक व्रत उपाओ पु (उत्पातः) उत्पतन, ऊध्वंगमन; २.७७ ।
विशेष १-१७३। उपावेइ सक. {उत्पलावयति) यह गोता खिलाला है। ! उवसमो पु. (उपसर्गः) उपद्रव, बाधा; उपसर्ग-विशेष; कूदाता है। २-१०६
५-२३१ । - उप्पेहड ( देशज ) वि.(?) उमट, आडम्बर वाला; | उवह वि. (उभयं) दोनों; २.१३८ ।
उचहसिधे वि. (उपहसितम्) हंसी किया हुवा हंसाया प'फालइ सक. ( उत्पाटयति ) वह उठाता है; उखेड़ता हुआ; १-१७३। है; २-१७४।
| वहासं पु. (उपहासम्) हंसी, टटु', -२०१॥

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