Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Ratanlal Sanghvi
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 557
________________ आगमय, पु. वि. (बागमनः) शास्त्रों को बानने वाला; | पालिखो वि. पु. (माश्लिष्टः) मालिनित २-४५, १० ॥ । बाली स्त्री, (सखी) सखी, क्यस्या; (आकी) पंक्ति आगमियो पु. वि. (भागमिकः) शास्त्र-संबंधी, शास्त्र- | श्रेणी; १-८३।। प्रतिपादित; शमत्रोक्त वस्तु को ही मानने पालेदावे हे. कु. (आश्लेष्टुम्) आलिबन करने के लिये वाला; १-७७. १.२४; २-१६४। आगरिसो पु. (म कर्षः) ग्रहण, उपादान खींचाय;१-१७७ आलेदलु हे. कृ. (आश्लेष्टुम्) आपिन करने के लिये, आगारी पु. (बाकारः) अपवाद इंगित; चेष्टा विष | २-१६४ । ___ RIN; r; .-२७७। आलोअण म. (आलोचन) देखना; 1-७ । आदत्तो वि. (बारब्धः) शम किया हुआ; प्रारब्ध २-११८ श्रावज न. मातोद्यम्) बाजा; याय १-१५६ । आदिश्री वि. (आहतः) सत्कृत; सम्मानित: १-१४३। श्रावत्तो वि. बावर्तकः) वक्राकार भ्रमण करने वाला; श्राणत्ती स्त्री, आज्ञप्तिः) आज्ञा हुक्म: २-१२ -100 ओणवणं न. (आज्ञापनं) आजा, आदेश, फरमाइशः २-१२/ आवत्तर्ण न. (आवर्तनम्) चक्राकार भ्रमण ३-३०। प्राणा स्त्री (आज्ञा) आशा, हुक्म; २-८३, १२। श्रावत्तमाणो दक (आवर्तमानः) चक्राकार घूमता हुला; आरणालजखम्भो पु. (बालानस्तम्भः) जहां हाथी बांधा १.२७१। जाता है ह स्तम्भ; २९७, ०७।। प्रावलि स्त्री. (मावलिः) पंक्ति, समूह १-4। बाणालो पु. आलान:। बंधन; हाथी शोधने की रज्जु, श्रावसहो पु. (आवसथ:) घर, बाश्रय, स्वान मठ; १-१८७ होरी २-१७। श्रावासयं न. (आवासकम्) (आवश्यक), नित्यकर्तव्य; आफंसो पु (पास्प:) अल्प स्पर्श; १.४४ । श्राम अ. (अभ्युपगमा स्वीकार करने अर्थम: आवेडा पु. ( आपीड़) फूलों की माझा; सिरोभूषण; २०७७। १-२०२। आमेलो पु. (आपीडः) फूलों की माला, शिरोभूषण; श्रासं न. (आस्यम्) मुख, मुहै। २-१२। १-१०५, २००, २३४ । आसारो पु (आसारः) वेग से पानी बरसना; १-७६ श्रायंसो पु. (भावी पण लामिक भासीसा स्त्री, (आशीः) आशीर्वाद; २-१७४ । विशेष; २-१०५ । आसो पु. (अश्वः) घोड़ाः १-३॥ पायाममओ वि. पु. (आगमिष: शापीत । आहडे वि. (आहृतम्) छीनर हुमा, चोरी किया हथा; प्रतिपादित; १-१७७ । १-२०६। आयरिश्रो पु. (आचार्यः) गण का मायक, आचार्य, १-० श्राहिआई स्त्रो. : अभिजाति:) कुलीनता, खानदानी; १-४४ २-१०७। | आहित्थ वि. (? दे) चलित, मत, कुषित, व्याकुल, श्रायरिसो पु. (आदर्श:) दर्पण; बैल आदि के गले का भूषण २-१७४। विशेष; २-१०५ । प्रायास पु. न. (आकाश) आकाश, अन्तराल १-८४ । पारण वि. (मारण्य) जंगली; १-६६ । इ अ. (पाद पूरणे प्रयोगार्थम्) पाद-पूत्ति करने आरमाल न. (भारमालम् ) कांजी, साबुदाना देशज) में प्रयुक्त होता हे २-२१७ ॥ __ कमान १-२२८ ॥ इअ अ. (इति) ऐसा; १-४२, ९१ । प्रारम्भो पु. (मारम्म:) प्रारम्भ; जीव-हिंसा; पाप-कर्म इअर वि. (इतर) अन्य; १-७ । इभरहा अ. (इतरथा) अन्यथा, नहीं तो, अन्य प्रकार से: बालरिखमो सक. (आलक्षयामः) हम जानते हैं; हम पह २.२१२। चानते हैं १-७ । | इआणि अ. (इदानीम् । इस समय १-२९ ।

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