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स्था-(धातु) ठहरने अर्थ में
चिइ अक. (तिष्ठति) वह ठहरता है; १-१९
ठाइ अफ (तिष्ठति) वह टहरता है; १-१९९ ठविश्रो ठावित्री. वि. (स्थापित: जिसकी स्थापना की
गई हो वही १-६७ । पट्टि परिट्रिअं वि. (प्रतिष्ठितम्) प्रतिष्ठा प्राप्त को;
१-३८। परिद्वयित्रो परिठ्ठावित्रो वि. ( प्रतिस्थापितः ) जिसके
स्थान पर अथथा जिसके विरुद्ध में स्थापना की गई हो वह
१.१७॥ परिट्रविर्ष वि. (परिस्यापितम्) विशेष रूप में जिसकी
___ स्थापना की गई हो पह, अथवा उसको ५-१२९ संठवित्रो संठावित्री वि. (संस्थापितः) व्यवस्थित रूप में |
जिली सपा की गई हो बह;
१-१६७। स्मर् (धातु)
विम्हरिमो सक. (विस्मरामः) हम भूलते हैं।
२-१९३ । स्वप् सोवइ, सुबइ, अक, (स्वपिति) वह सोता है, सोती है१-६४ सुप्पड़, अक. (स्वपित्ति) सोती है; २.२७९ ।
सुत्तो वि. (सुप्तः) सोया हुआ; २-७७ । पसुत्तो, पासुत्तो वि. (प्रसुप्तः) (विशेष ढंग से ) सोया
हुमा १४४।
हत्थो पु. (हस्तः) हाप; २०४५, ९० ।
___ हत्था पु. (हस्तो) दो हाथ; २-१६४ । हसो अ. (हा ! धिक) खेद अनुताप, पिस्कार
अर्थक अव्यय: ३.१९२ । हा-(धातु) हनन अर्थ मेंइयं वि. (हतम्) मारा हुआ, नष्ट हुवा
१-२०१२-०४1 निहाश्री वि. (निहतः) विशेष रुप से मारा
हुआ; १-१८.1 हन्द अ. (गृहणा) 'ग्रहण करो "अर्थ में
प्रयुक्त होने वाला मध्यय; २.१८।। इन्दि अ. (विवादादिषु) विषाद, वेद, विकल्प,
पश्चाताप, निश्चय, सत्य, पहाण-(लेडो)
मादि अर्थक अव्यय, २.१८०, १८१। हं सर्व. (बहम्) में;.-४०। हयासो वि. (हताशः) जिसकी बाशा नष्ट हो गई
हो वह, निराश, १.२०१। त्यासस्स वि. (हताशस्य) हताश को, निराफा
की; २-१९५। हरइ सक. (हरति) यह हरण करता है; नष्ट करता
ह (हा) अ. (पाच-पूसि-अर्थ) पाद पूर्ति के अर्थ में,
संबोधन अर्थ में काम आने वाला अध्यय; ५.१७
(हसः) पक्षी-विदोष हंस; २-१८२ । हहो भ. (ह. भोः, इंहो ! ) संबोधन, तिरस्कार;
गर्व, प्रश्न आदि अर्थक अध्यय; २-२१७ । ह्णुमन्ता पु. (हनुमान) अञ्जना सुन्दरी का पुत्र, हनुमान
१.१२१, २-१५९। इणुमा पु. (हनुमान) हनुमान, अञ्जना सुन्दरो का !
पुत्र; २.२५९ ॥ हत्थुल्ला पु. (हस्तौ )दो हाथ २-१६४ ।
हरन्ति सक. (हरन्ति) वे हरण करते हैं; आकर्षित
करते हैं। २-२.४ । हिनं वि. (हतम) हरण किया हुआ; चुराया
हुआ; १-१२८। श्रोहाइ सक. (अवहति) वह अपहरण
करता है; १७२. अवहद वि. (अपहृतम्) दुराश हुआ;
अपहरण किया हुया -२०६१ पारडं वि. (माहूतम्) अपहरण करके,
चुरा करके साया हुआ; १-२.६। वाहितं वि. (ध्याहृतम्) कहा हुआ। १-१३८ चाहियो, वाहितो वि. (व्याहृतः) उक्त,
कषित; २.९९ संहरइ सक. (संहति) वह हरण करता है,
चुराता है: १.३.। हर ' (हर) महादेव, शंकर; १-१८३ । । हरस्स पु. (हर-य) हर की, महादेव की, शंकर
की; १-१५८।