________________
* प्राकृत व्याकरण *
-: पादान्त मंगलाचरण :--- द्विपत् पुर चोद-विनोद हेतो र्भवादवामस्य भवद्भुजस्य ।
अयं विशेषो भुवनैकवीर ! परं न यत्-काममपाकरोति ॥ १ ॥ अर्थ:--हे विश्व में एक ही-अद्वितीय वोर सिद्धराज ! शत्रुओं के नगरों को विनष्ट करने में ही मानन्द का हेतु बनने वाली ऐमी तुम्हारी दाहिनी भुजा में और जव हार्यात भगवान शिव-शकर में (परस्पर में) इतना ही विशेष अन्तर है कि जहाँ भगवान् शिव-शङ्कर काम-(मदन-देवत्ता) को दूर करता है। यहाँ तुम्हारी यह दाहिनी भुजा काम (शत्रुओं के नगरों को नित्य ही नष्ट करने की इच्छा विशेष ) को दूर नहीं करतो है । तुम्हारे में और शिव-शक्कर में परस्पर में इसके अतिरिक्त सभी प्रकार से समानता ही है । इति शुभम् |
इति अष्टम अध्याय के द्वितीय पाद की 'प्रियोदयाख्या'
हिन्दी-व्याख्या समाप्त ।