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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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से प्रथम दो रूपों में मत्र संख्या २-२१० से 'प्रत्येकम्' के स्थान पर 'पाक्षिक और पाडिएक' रूपों की ऋमिक आदेश प्राप्ति होकर क्रमसे दोनों रूप पाडिक' और 'पाडिएवं सिद्ध हो जाता है।
तृतीय रूप (प्रत्येकम् ) पोश्र में मत्र-संख्या ६-७E से 'र' का लोप; २-से 'य' का लोप; २.८६ मे लोप हुए 'य' के पश्चात् शेष रहे हुए 'स्' को द्वित्व 'श' की प्राप्ति; :-1 से क' का लोप; और ५-२३ से अन्त्य हलन्त 'म्' का अनुस्वार होकर पत्ते रूप सिद्ध हो जाता है । ॥२-२१॥
उअ पश्य ॥२-२११ ॥
उथ इति पश्येत्यस्यार्थे प्रयोक्तव्यं वा ॥ उप निच्चल-निष्फंदा भिसिणी-पत्तमि रेहइ बलाश्रा।
निम्मल-मरगय-मायण-परिद्विश्रा सङ्ख-सुत्ति व्य ।। पाने गुरुगादयः।
अर्थ:--'देखो' इस मुहाविरे के अर्थ में प्राकृत में 'अ' अव्यय का वैकल्पिक रूप से प्रयोग किया जाता है। जैसे:- पश्य-उन अर्थात् देखो। 'ध्यान आर्णित करने के लिये' अथवा 'सावधानी बरलने के लिये 'अथवा' पेतावनी देने के लिये हिन्दी में 'देखो' शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसी सात्पर्य को प्राकृत में व्यक्त करने के लिये 'उग्र' अध्यय को प्रयुक्त करने की परिपाटी है । भाव-स्पष्ट करने के लिये नीचे एक गाथा उद्धृत की जा रही है:संस्कृता-पश्य निश्चल-निष्पन्दा बिसिनी-पत्र राजते बलाका ॥
निर्मल-मरकन-भाजन प्रतिष्ठिता शंख-शुक्तिरिव ॥२॥ प्राकृता-उम निश्चल-निफा मिसिणी-पत्चमि रेइ बलामा ।।
निम्मल मरगय-भायण परिट्टिा सज-सुशिब ॥१॥ भर्थ:--'देखो'-शान्त और अचंचज्ञ बगुली (तालाब का सफेड-वर्णीय मापो पक्षी विशेष) कमलिनी के पत्ते पर इस प्रकार सुशोभित हो रही है कि मानों निर्मल मरकत-मणियों से बाचित रतन में शंख अथवा सीप प्रतिष्ठित कर दी गई हो अथवा रख दी गई हो । उपरोक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि 'बलाकाम्बगुली' की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिये व्यक्ति विशेष अपने साथी को कह रहा है कि 'देखो (प्रा उत्र) कितना सुन्दर दृश्य है !' इस प्रकार 'उ' अध्यय की उपयोगिता एवं प्रयोगशीखता जान लेना चाहिये । पक्षान्तर में 'उन' अध्यय के स्थान पर प्राक्त में 'पुलम' श्रादि पन्द्रह प्रकार के भादेश रूप भी प्रयुक्त किये जाते हैं, जो कि सूत्र संख्या ४-१८१ में प्रागे कडे गये हैं । तदनुसार 'पुलम' श्रादि रूपों का तात्पर्य भी 'बम' भन्म के समान ही जानना चाहिये।
पश्य संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप 'उ' शेता है। इसमें सूत्र संख्या २-१११ से परम के