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* प्राकृत व्याकरण *
अर्थ:-' सम्मुख करने' के अर्थ में और 'सली' को आमंत्रित करने के अर्थ में प्राकृत भाषा में 'हे' अध्यय का प्रयोग किया जाता है। 'मेरी ओर देखो' अथवा 'हे सखि !' इन तात्पर्य पूर्ण शब्दों के अर्थ में 'वे' अव्यय का प्रयोग किया जाना चाहिये। जैसे:-वे ! प्रसीद तावत् (हे) सुन्दरि 1 दे पसिथ साथ (हे) सुन्वरि अर्थात् मेरी और देखो; अब है सुन्दरि ! प्रसन्न हो जाओ। वे (हे सखि ! ) या प्रसीद निवर्त्तस्व दे! मा पसिम निभतसु अर्थात् हे सखि म प्रसन्न हो जाओ और निबूत हो यो । )
'वे' प्राकृत-साहित्य का संमुखीकरणार्थ अध्याय है; तदनुसार रूद्र-अयंक और कठ-रूपक होने से साधनिका की आवश्यकता नहीं है ।
पति रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१०१ में की गई है।
ताथ अव्यय की सिद्धि सूत्र संख्या १-११ में की गई है।
हे ( सुन्दरि ! संस्कृत संबोधनात्मक रूप है। इसका प्राकृत कर भी 'सुन्दर' ही होता है। इसमें सूत्रसंख्या ३२६ मेरे संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में
चीन के
अस्य दीर्घ स्वर 'ई' को हृस्व स्वर 'इ' की प्राप्ति होकर (है) सन्दरि रूप सिद्ध हो जाता है
'अ' संस्कृत अव्यय है । इसका प्राकृत रूप भी 'आ' हो होता है। यतः सावनिका की आवश्यकता नहीं है।
पति रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-१०१ में की गई है।
निवर्त्तस्थ संस्कृत आशार्थक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप निजत होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से द' का लोप २०३९ से '' का लोप और ३-१७३ से संस्कृत आज्ञार्थक प्रत्यय 'स्व' के स्थान पर शकृत में सु' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मिजस रूप सिद्ध हो जाता है ।।२-१९६।।
हुं दान-पृच्छा-निवारणे ॥२- १६७॥
हुं इति दानादिषु प्रयुज्यते || दाने । हुँ यह अपणो च्चिन || पृच्छायाम् । हुँ साहसु सम्भावं । निधारणे । हुँ निल्लज्ज समोसर ||
अर्थः- 'वस्तु विशेष' को देने के समय में ध्यान आक्ति करने के लिये अथवा साधा बरसने के लिये प्राकृत साहित्य में '' अवश्य का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार से किसी भी तरह की बात पूछने के समय में भी '' अव्यय का प्रयोग किया जाता है एवं 'निबंध करने के अर्थ में अपना 'मनाई' करने के अर्थ में भी 'हूँ' अध्यय का प्रयोग किया जाता है। क्रम से उदाहरण इस प्रकार है:- [हं गृहाण आत्मनः एव गेव्ह अप्पणो विषय अर्थात् आप ही ग्रहण करो । 'पूछने के' अर्थ में 'हूं' अव्यय के प्रयोग का उदाहरण इस प्रकार है:- हुं कथय सद्भाव सासु सभा | 'निवारण' के अर्थ में 'हूँ' अव्यय के प्रयोग का उदाहरण यों है:- हूं निर्लज्ज | समपसर-निल समोसर अर्थात् हुं ! निर्लज्ज | निकल जा ।
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