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- प्राकृत व्याकरण *
पश्चाचाप-विषयक उदाहरण इस प्रकार है:संस्कृतः-अश्वो क्या तेन कृता अहम् यथा कस्मै कथयामि । प्राकृतः अन्बो तह सेण कया अयं जह फम्स साइमि ।
अर्थ:--पायाचाप की बात है कि जैसा उसने किया; वैसा मैं किससे कहूं ? इस प्रकार यहां पर अन्यो अध्यय पश्चात्ताप सूचक है।
अशो-प्राकृत-साहित्य का स्वरूपक और सन-अर्थक अध्यय है; अतः साधनिका की भावश्यकता नहीं है।
दुष्कर-कारक संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप दुक्कर-यारय होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से '' का लोप; २-८६ से लोप हुए 'ष' के पश्चात् शेष रहे हुए प्रथम 'क' को द्वित्व 'क' की प्राप्ति; १-१७७ से द्वितीय 'क' और तृतीय 'क' का लोप; १-१८० से दोनों 'क' वर्गों के लोप होने के पश्चात शेष रहे हुए 'श्रा' और 'श्र' के स्थान पर ऋमिक यथा रूप से 'या' और 'य' की प्राप्ति होकर दुक्कर-यारय रूप की सिद्धि हो जाती है।
__दलन्ति संस्कृत क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप भी दलन्ति ही होता है। इसमें सूत्रसंख्या ४-२३६ से हलन्त धातु 'दल' में विकरण प्रत्यय '' की प्राप्ति और ३-१४२ से वर्तमान काल के बहुवचन में प्रथम पुरुष में प्राकृत में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर दलन्ति रूप सिद्ध हो जाता है।
हृदयम् संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप हिययं होता है। इसमें सूत्र संख्या -१२८ से 'ऋ' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति; १-१७७ से 'दु' का लोप; १-१८० से लोप हुए 'द' के पश्चात शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'थ' की प्राप्ति; ३-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्रि और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर हिययं रूप सिद्ध हो जाता है।
किम अव्यय की सिद्धि सूत्र-संख्या १.२९ में की गई है।
'इदम् संस्कृत सर्वनाम रूप है । इसका प्राकृत रूप इणं होता है । इसमें सूत्र संख्या ३-४ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुसक लिंग में 'इदम्' के स्थान पर 'इणं आदेश की प्राप्ति होकर गणं रूप सिद्ध हो जाता है।
हरन्ति संस्कृत क्रियापद का रूप है । इसका प्राकृत रूप हरन्ति होता है । इसमें सूत्र संख्या ५-२३६ से प्राकृच इलन्त धातु 'हर' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति और ३.१४२ से वर्तमान काल के बहुवचन में प्रथम पुरुष रूप में प्राकृत में 'न्ति' प्रत्यय की प्राप्ति होकर हरन्ति रूप सिद्ध हो जाता है।
"हिअयं रूप की सिद्धि सूत्र संख्या १-७ में की गई है।