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• प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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संस्कृत:-अब्बो हरंति हृदयं तथापि न द्वेष्याः भवति युवतीनाम् ।।
अब्बो किमपि रहस्य जान ति धूर्नाः जनाभ्यधिकाः ॥ १ ॥ प्राकृतः-अध्वी हरन्ति हिश्चयं तहविना वेसा इवन्ति जुपमा ।
अब्दो किं पि रहरसं मुणन्ति धुत्ता जप्णकमहिना ॥२ ।। अर्थात् (कामी पुरुष) युवती-स्त्रियों के हृदय को हरण कर लेते हैं। तो मी (ऐसा अपराध करवे पर भी ) (वे स्त्रियां ) द्वेष भाव करने वाली-(हदय को चुराने वाले चोरों के प्रति ) (दुष्टता के भाव रखने वाली) नहीं होता है। इसमें 'अव्यों का प्रयोग उपरोक्त रोति से अपराध-सूचक है। जन-साधारण से बुद्धि की) अधिकता रखने वाले ये ( कामी) धूर्त पुरुष आश्चर्य है कि कुछ न कुछ रहस्य जानवे हैं । 'रहस्य का जानना' पाश्चर्य सूचक है-विस्मयोत्पादक है, इसी को 'अन्यो' भव्यय से व्यक्त किया गया है।
आनन्द विषयक उदाहरण:-अब्वो सुप्रभातम् इदम् = अन्यो सुपहार्य इणं अानन्द की बात है कि (आज) यह सु प्रभात (हुश्रा) । श्रादर-विषयक उदाहरणः-भव्यो अद्य अस्माकम् सफलम् जीवितम् अव्वो अजम्ह सरफलं जी = (आप द्वारा प्रदत इस) श्रादर से आज हमारा जीवन सफल हो गया है।
भय-विषय उदाहरणः-अव्वो अतीते त्वया केवलम् यदि सा न खेद्ध्यति = श्रन्यो भइनम्मि तुमे नवरं जद सा न जूगि देह (मुझे भय (है कि) यदि तुम चले. जानोगे तो तुम्हारे चले जाने पर क्या पह खिन्नता अनुभव नहीं करेगी; अर्थात अवश्य ही खिन्नता अनुभव करेगी । यहाँ पर 'अयो' भव्यय भय सूचक है।
खेद-विषयक उदाहरणः- अब्बी न यामि क्षेत्रम् - अश्वो न जामि छेत्तं खेद है कि मैं खेत पर नहीं जाती हूं। अर्थात खेत पर जाने से मुझे केवल खिन्नता हो अनुभव होगी-रंज ही पैदा होगा। इस प्रकार यहाँ पर 'अन्यो' अध्यय का अर्थ 'खिनता अथवा रंज' ही है।
विषाद-विषयक उदाहरणःसं०-अश्वो नाशयति धृतिम् पुलके वर्धयन्ति ददंते रणरण के !!
इदानीम् तस्यः इति गुणा ते एव. अषो कथम् तु एतान् । प्रा०- अन्यो नासेन्ति विहिं पुलयं बडढेन्ति देन्ति रणरणयं ॥
एरिहं तस्से गुणा ते च्चिन अव्वो कह णु एवं ॥ अर्थः खेद है कि धैर्य का नाश करते हैं; रोमाञ्चितता बढ़ाते हैं; काम-वासना के प्रति उत्सुकता प्रदान करते हैं; ये सब वृत्तियों इस समय में उसी धन-वैमव के ही दुगुण हैं अथवा अन्य किसी कारण से है ? खेद है कि इस संबंध में कुछ भी स्पष्ट रूप से विदित नहीं हो रहा है । इस प्रकार अव्यो अध्यय यहाँ पर विषाद-सूचक है।