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के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; २-५७ से 'स्' का लोप; १-१७७ से 'तू' का लोप; १-१९८० से लोप हुए 'त' के पश्चात शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति और ३-११ से सप्तमी विभक्ति के एक वचन में अकारान्त में संस्कृत प्रत्यय के 'हि' के स्थान पर प्राकृत में 'डेन्स्' प्रत्यय की प्राप्ति; प्राप्त प्रत्यय 'दे' में 'ड' इत्संज्ञक होने से 'नहयल' के अन्त्य स्वर 'अ' की इत्संज्ञा होने से लोप; एवं १-५ से अन्त्य हलन्त रूप 'नहयल' में पूर्वोक्त 'ए' प्रत्यय की संधि होकर महयले रूप सिद्ध हो जाता है ॥२- २०३ ||
* प्राकृत व्याकरण *
अन्वो सूचना दुःख - संभाषणापराध- विस्मयानन्दादर-भय-खेद-विषाद पश्चात्तापे । २ - २०४ ॥
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श्रव्य इति सूचनादिषु प्रयोक्तव्यम् || सूचनायाम् । अवो दुक्करयारय ॥ दुःखे | थब्वो दलन्ति हियं || संभाषणे । अन्वो किमियं किमियं || अपराध विस्मययोः । हरन्ति हि तह विन बेसा हवन्ति जुवईण | किं विरहस्पन्ति धुत्ता जगन्महिश्रा ॥१॥
आनन्दादर भयेषु |
सुहाय मिणं अच्वो अज्जम्छ सफलं जीनं । वो श्रमितुमे नवरं जड़ सा न जूरिहिइ २॥ खेदे | ऋव्यो न जामि छे । विषादे |
भव्त्रो नासेन्ति दिहिं पुलयं बन्ति देन्ति रणरणयं । एसिंह तस्से का गुणा ते च्चिय अव्वो कह णु एवं । ३ ।
पश्चात्तायें |
अव्वो तह तेश कया श्रयं जह कस्स साहेमि ॥
अर्थः- प्राकृत साहित्य का 'अब्बो' अन्यत्र ग्यारह अर्थों में प्रयुक्त होता है । उक्त म्यारह अर्थ क्रम से इस प्रकार - र· हैं: - ( ( ) सूचना, (२) दु:ख, (३) संभाषण, (४) अपराध (५) विस्मय, (६) आनन्द, (७) आदर, (८) भय (1) स्वेद (१०) विषाद और (११) पश्चाताप तदनुसार प्रसंग को देखकर 'अ'
sa का अर्थ किया जाना चाहिये। इनके उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं। सूचना-विषयक उदाहरणःश्रब्वी दुष्कर-कारक = अबो दुक्कर याश्य अर्थात (मैं) सूचना (करती हूं कि ) ( ये ) अत्यन्त कठिनाई से किये जाने वाले हैं। दुःख-विषयक उदाहरण:- श्रवो दलति हृदय = अन्यो दलन्ति हिययं अर्थात् दुःख है, कि वे हृदय को चीरते हैं- पीड़ा पहुंचाते हैं। संभाषण विषयक उदाहरण:- अन्वो किमिदं किमिदं अर्थात् अरे! यह क्या है ! यह क्या है ? अपराध और आश्चर्य विषयक उदाहरण: