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* प्राकृत व्याकरणा*
'णवर' अव्यय की सिद्धि सूत्र संख्या २-१८७ में की गई है। 'बम' सर्वनाम की सिद्धि सूत्र संख्या २-१८१ में की गई है। 'एमे सर्वनाम की सिद्धि इसी सूत्र में अपर की गई है।
का संस्कृत सर्वनाम रूप है । इसका प्राकृत रूप को होता है। इसमें सूत्र संख्या ३-७१ से मूल रूप 'किम्' के स्थान पर 'क' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'यो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर को रूप सिद्ध हो जाता है।
'एसो' की सिद्धि सूत्र-संख्या २-११% में की गई है।
सहस्रारीराः संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप सहस्ससिरो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७६ से प्रथम 'र' का लोप; २-८६ से लोप हुए 'र' के पश्चात् शेष रहे हुए 'स' को द्वित्व 'रस' की प्राप्ति; १-२६० से 'श्' के स्थान पर 'म' की प्राप्ति; १-४ से दीर्घ स्वर 'श्री' के स्थान पर हस्व स्वर 'अ' की प्राप्ति; और ३-२ से प्रधमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर सहस्स-सिरो रूप सिद्ध हो जाता है ।।२ १६८
ऊगहाँप-विस्मय-सूचने ॥२.१६६।। ऊ इति गर्दादिषु प्रयोक्तव्यम् । गर्यो । ऊ णिल्लज्ज । प्रक्रान्तस्य वाक्यस्य विपर्यासाशङ्काया विनिवर्तन लवण आक्षेपः ॥ ऊ किं मए भणिअं । विस्मये । ऊ कह मुणिमा अहयं सूचने । ऊ कण न विषणार्य ॥
अर्थ:-'क' प्राकृत साहित्य का अव्यय है; जो कि 'गह अर्थ में थाने निन्दा अर्थ में; बाक्षेप अर्थ में अथवा तिरस्कार अर्थ में; विस्मय याने आश्चर्य अर्थ में और सूचना याने विदित होने अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है । 'गहीं अथवा निंदा का' उदाहरणः - अरे (धिक) निर्लज !=ऊ ! णिल्लज्ज अर्थात अरे निलज्ज ! तुझे धिक्कार है । 'आक्षेप का यहां विशेष अर्थ किया गया है, जो कि इस प्रकार है:-वार्तालाप के समय में कहे गये वाक्य का कहीं विपरीत अर्थ नहीं समझ लिया जाय, तदनुसार उत्पन्न हो जाने वाली विपरीत प्राशंका को दूर करना ही 'आक्षेप' है। इस अर्थक 'श्राक्षेप का सदाहरण इस प्रकार है:-3, किं मया भणित= ऊ किं मए मणि अर्थात क्या मैंने तुमको कहा था ? ( तात्पर्य यह है कि–'तुम्हारी धारणा ऐसी है कि मैंने तुम्हें कहा था, किन्तु तुम्हारी ऐमी धारणा ठीक नहीं है, मैंने तुमको ऐसा कब कहा था)।
___विस्मय-आश्चर्य' अर्थक उदाहरण यों है:-3, कथं (झाता) = मुनिता अहं = ऊ, कह मुणिमा अयं अर्थात प्राध्य है कि मैं किस प्रकार अथवा किस कारण से जान ली गई हूं, पहिचान ली गई हूँ। 'सूचना अथवा विदित होना' अर्थक दृष्टान्त इस प्रकार है:-ऊ, केन न विज्ञातम-ऊ, केण न विरुणायं