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* प्रियांदप हिन्दी व्याख्या सहित -
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भर्थात अरे ! किसने नहीं जाना है ? याने इस बात को तो समो कोई जानता है । यह किसी से छिपो हुई बात नहीं है । इस प्रकार 'क' अव्यय के प्रयोगार्थ को जानना चाहिए ।
प्राकृत साहित्य का 'मिन्दादि' रूढ अर्थक और रूढ-रूपक अव्यय है, अतः सावनिका की आवश्यकता नहीं है।
(हे) निर्लज्ज ! संस्कृत संबोधनात्मक रूप है। इसका प्राकृत रूप जिल्लज्ज होता है । इसमें सूत्र संख्या १-२०१ मे 'न' को करारा 'ए' मालि; -से ' का लोप, ६-८८ से 'र' के लोप होने के पश्चात शंप रहे हुए 'ल' को द्वित्व 'क्ल की प्राप्ति और ३-३८ से सम्बोधन के एक वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि के स्थानीय रूप (डो=) 'ओ' का वैकल्पिक रूप से लोप होकर जिल्लख रूप सिद्ध हो जाता है।
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'किं' की सिद्धि सूत्र संख्या १-२९ में की गई है।
मया संस्कृत तृतीयान्त सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप मए होता है । इसमें सूत्र संख्या ३-१०६ से संस्कृत मर्वनाम 'अस्मद्' के साथ में तृतीया विभक्ति के प्रत्यय 'टा' का योग प्राप्त होने पर प्राप्त रूप 'मया' के स्थान पर प्राकृत में 'मए' आदेश को प्राप्ति होकर मए रूप सिद्ध हो जाता है।
'भणिों रूप की सिद्धि सूत्र संख्या -१९३ में की गई है। 'कह की सिद्धि सूत्र संख्या १-२९ में की गई।
ज्ञाता (-मुनिता) संस्कृत विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप मुणिमा होता है। इसमें सूत्र संख्या ४-७ से 'ज्ञा' के स्थान पर 'मुण' श्रादेश, ४-२३६ से हलन्त धातु 'मुण' में बिकरण प्रत्यय 'म' की प्रामि; ३-१५६ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'इ' को प्राप्ति; और १-१७७ से न' का लोप होकर मणिआ रूप सिद्ध हो जाता है।
अहम् संस्कृत सर्वनाम रूप है इसका प्राकृत रूप अहयं होता है। इसमें सन्न संख्या ३-०५ से संस्कृत सर्वनाम 'अस्मद्' के प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के योग से प्रारूप 'अहम्' के स्थान पर प्राकृत में 'अहय' आदेश की प्राप्ति होकर श्रयं रूप सिद्ध हो जाता है ।
केन संस्कृत तृतीयान्त सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप केण होता है । इसमें सूत्र संख्या ३-७१ से मूल रूप 'किम्' के स्थान पर 'क' की प्राप्ति; ३.६ से तृतीया विभक्ति के एक वचन में अकारांत पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'टा' के म्यान पा प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-१४ से प्राप्त प्रत्यय 'ण' के पूर्व में स्थित 'क' के अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'ए' को प्राप्ति होकर केण रूप सिद्ध हो जाता है।
'न' की सिद्धि सूत्र संख्या १-5 में की गई है।