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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित -
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अव्ययम् ॥२-१७५ ॥ अधिकारीयम् । इतः परं ये बक्ष्यन्ते आ पाद समाप्ते स्तेऽव्ययसंज्ञा ज्ञातव्याः ॥
अर्थ:-यह सूत्र-अधिकार-वाचक है; प्रकारान्तर से यह सूत्र-विवेसमान विषय के लिपे शीर्षक रूप भी कहा जा सकता है। क्योकि यहां से नवीन विषय रूप से 'अध्यय-शम्मों' का विवेचन प्रारम्भ किया जाकर इस द्वितीय पाच की समाप्ति तक प्राकृत-साहित्य में उपलब्ध लगभग सभी अध्ययों का वर्णन किया जायगा। अतः पाव-समाप्तिपर्यन्त जो शम्न कहे जांयगें; उन्हें 'अव्यय संज्ञा' वाला जानना ।
तं क्योपन्यासे ॥२-१७६॥ तमिति वाक्योपन्यासे प्रयोक्तव्यम् । ततिअस-बन्दि-मोक्वं ॥
अर्थ:-'त' शब्ब भव्यय है और यह वाक्य के प्रारंभ में शोभारूप से अलंकार रूप से प्रयुक्त होता है। ऐसी स्थिति में यह अध्यय किसी भी प्रकार का अर्थ सूवक नही होकर कंवल अंलकारिक होता है इस केस साहित्यक परिपाटी ही समझना चाहिए। जैसे:-त्रिवश-बंकिमोक्षम् = तं तिअस-बंदि मोक्तं | इस उदाहरण में संस्कृत रूप में 'त' पाचक शब रूप का अभाव है। किन्तु प्राकृत रूपान्तर में 'त' की उपस्थिति है। यह उपस्थिति योभा स्प हो है। अलंकारिकही है कि किसी विशेष-सात्पर्य को बतलाती है। यों अन्यत्र भी 'त' को स्थिति को ध्यान में रखना चाहिय । 'तं' अव्यय है। इसकी साधनिका की आवश्यकता उपरोक्त कारण से नहीं है।
त्रिदश-बन्धि-मोक्षम् संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप तिअस-बन्धि मोक्खं होता है। इसमें तत्र-संक्या २.७९ से '' में स्थिति 'र' का लोप; १-१७७ से प्रथम 'द' का लोप; १-१६. से 'श' के स्थान पर 'स' ही प्राप्ति २-३ से '' के स्थान पर 'ख' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'व' के स्थान पर द्वित्व 'रुख' को प्राप्ति; २.९० से प्राप्त पूर्व 'ब' के स्थान पर 'क' की प्राप्ति और ३-५ से द्वितीमा विभक्ति के एक वचन में अहारान्त पुल्लिग में 'म प्रत्यय की प्राप्ति एवं १-२३ से प्राप्त म्' का अनुस्वार होकर तिस-वदिमोक्खं रूप सिद्ध हो जाता है । २-१७६ ।
आम श्रभ्युपगमे ॥ २-१७७ || आमेत्यभ्युपगमे प्रयोगक्तव्यम् ॥ श्राम बहला वणोली ।। - अर्थ:-स्वीकार करने अर्थ में अर्थात् 'हा' ऐसे स्वीकृति-सूचक अर्थ में प्राकृत साहित्य में 'ग्राम' अध्यय का उच्चारण किया जाता है। जैसे:-आप बहला वनालिः = आम बहला कणोली । हाँ, {पह) सधन बन-पंक्ति है। 'शाम' अव्यय रूप है । रक रूप वाला होने से एवं दस-अयंक होने से सानिका को आवश्यकता नहीं रह जाती है।
बहला संस्कृत विशेषण रूप है । इसका प्रकृत रूप भी बहला हो होता है । अतएव सामनिका को आवश्यकता